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  • वाल्मीकि और कालिदास की काव्यकला - Valmiki Aur Kalidas ki Kavyakala by Dr. Nodanath Mishra - Motilal Banarsidass author
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वाल्मीकि और कालिदास की काव्यकला- Valmiki Aur Kalidas ki Kavyakala by Dr. Nodanath Mishra

Publisher: Kavya Kala of Valmiki and Kalidasa
Language: Hindi
Total Pages: 396
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 500.00 Sale price Rs. 600.00
Unit price per
Tax included.

Description

प्रस्तुत ग्रन्थ में महाकाव्य के सामान्य शास्त्रीय सिद्धान्तों के आधार पर वाल्मीकि और कालिदास की काव्यकला का विवेचन, रामायण और रघुवंश को आदर्श मानकर किया गया है। इन दोनों महाकवियों से एक ओर राष्ट्रिय विचारधारा और संस्कृति प्रभावित रही है तो दूसरी ओर इनकी समभाव समदृष्टि और सत्यं-शिवं-सुन्दरम् की कल्पना ने इन्हें आदर्श-रूप प्रदान किया है। वाल्मीकि की काव्य परंपरा को कालिदास ने अपनी प्रखर कल्पना से एक नूतन उत्कर्ष प्रदान किया है।

वाल्मीकि कान्तदर्शी कवि थे। उनकी कल्पना में दर्शन के साथ-साथ सरसवर्णन का भी मनोरम सामंजस्य था। उनके आदिकाव्य 'रामायण' को आधार मानकर परवर्ती विद्वानों और कवियों ने काव्य के मानदंड स्थापित किये। कालिदास ने उन मानदण्डों का आश्रय लेकर रघुवंश में वाल्मीकि के प्रति अपनी श्रद्धा समर्पित की है।

वाल्मीकि ने सरलरीति से पौराणिक आख्यानशैली पर 'रामायण' में रामकथा को प्रस्तुत किया तो 'रघुवंश' में कालिदास ने काव्य का सांगोपांग चित्रण किया है।

वाल्मीकि और कालिदास सर्वव्यापी काव्य सिद्धान्तों के पोषक कवि हैं। रामायण और रघुवंश में सब वर्गों के महाकाव्यों के व्यापक लक्षण समाविष्ठ हैं। रामायण के उदय से ही काव्य की आत्मा 'रस' को माना जाने लगा । इसमें कवि का रसमय हृदय प्रतिबिम्बित होता है। इसी की रसक्ता से परवर्ती काव्यों में 'रस' की प्रधानता को काव्य का गुण माना गया ।

रामायण सरलभाषा गेय छन्द, सहज अलंकार एवं रस परिपाक की स्वाभाविकता के कारण जनसामान्य का महाकाव्य है तो लोकभाषा में लोकतत्त्वों से पूर्ण 'रघुवंश' भी लोकप्रिय महाकाव्य है। वाल्मीकि की परंपरा को कालिदास ने युगचेतना, राजनैतिक सामाजिक और धार्मिक स्थिति से संश्लिष्ट कर निवाहा है ।

वाल्मीकि ने जिस विचारधारा को इतिहास के आश्रय से व्यक्त किया, कालिदास ने उसे पुराणों, शास्त्रों के आश्रय से प्रकट किया। दोनों के महाकाव्य लोकमंगल के साधक और प्रतिष्ठापक हैं।