Description
महाभाष्यदीपिका-विमर्श नामक प्रस्तुत ग्रन्थ भर्तृहरिविरचित महाभाष्यदीपिका में निहित संस्कृत-व्याकरणदर्शन के सम्प्रत्ययों का विशद विवेचन प्रस्तुत करता है। विदुषी लेखिका ने महाभाष्य की सर्वप्राचीन ज्ञात टीका और एकमात्र पाण्डुलिपि के आधार पर सम्पादित महाभाष्यदीपिका के उपलब्ध अंश के आधार पर दीपिका के अध्ययन का श्लाघनीय प्रयास किया है। छः अध्यायों में विभक्त इस ग्रन्थ में शब्दसिद्धान्त, स्फोट, अर्थ, शब्दार्थ-सम्बन्ध, अपभ्रंश, वाक्य जैसी महत्वपूर्ण दार्शनिक अवधारणाओं को पतञ्जलि तथा भर्तृहरि की दृष्टि से निरूपित किया गया है। इस अध्ययन से यह भी स्पष्ट होता है कि भाष्यकार पतञ्जलि तथा भर्तृहरि के मध्यवर्ती अन्तराल में भी व्याकरण-दार्शनिकों की एक समृद्ध परम्परा रही है। दीपिका में यत्र तत्र विकीर्ण उन अज्ञातनामा ग्रन्थकारों के मन्तव्यों को भी प्रकाश में लाया गया है।