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  • अर्थविज्ञान (संस्कृत व्याकरण एवं काव्यशास्त्र का योगदान): Semantics (1988) - Motilal Banarsidass author
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अर्थविज्ञान (संस्कृत व्याकरण एवं काव्यशास्त्र का योगदान): Semantics (1988)

(Contribution of Sanskrit Grammar and Poetics)
Publisher: Nag Publishers
Language: Sanskrit, Hindi
Total Pages: 302
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 400.00 Sale price Rs. 500.00
Unit price per
Tax included.

Description

अर्थविज्ञानः संस्कृत व्याकरण एवं काव्यशास्त्र का योगदान

डॉ. कमलाकांत मिश्र, रीडर [संस्कृत] राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद्, नई दिल्ली, अर्थतत्त्व के सम्यक् परिज्ञान के लिए ही शब्द का प्रयोग होता है । अतएव शब्द से अर्थ की अभिव्यक्ति कैसे होती है तथा वाणी के इन तत्त्वों में परस्पर क्या सम्बन्ध है, इसका वैज्ञानिक विवेचन अर्थविज्ञान है और इस विषय में भारतीय मनीषियों ने वैदिक काल से ही पर्याप्त चिन्तन किया है।

भारतीय अर्थचिन्तन परम्परा में वैयाकरणों एवं साहित्यशास्त्र के आचार्यों का मुख्य योगदान रहा है। मीमांसा, न्याय एवं बौद्ध आदि दर्शनों के आचार्यों ने भी अर्थतत्त्व संबंधी चिन्तन किया है । इन सभी का प्रस्तुत पुस्तक में तुलनात्मक विवेचन विद्वान लेखक ने किया है।

प्रस्तुत पुस्तक में अर्थविज्ञान का परिचय एवं महत्व, अर्थ के लक्षण एवं स्वरूप, अर्थबोध के साधन अर्थबोध के बाधक कारण तथा अर्थबोध की दृष्टि से शब्दों का वर्गीकरण, अर्थनिर्णय के साधन, अर्थ के विभिन्न स्तर, अर्थपरिवर्तन की दिशायें तथा उनके कारण, पद एवं पदार्थों का परिशीलन, वाक्य एवं वाक्यार्थ का निरूपण तथा स्फोट सिद्धान्त का अनुशीलन विद्वतापूर्वक किया गया है।