Description
प्रस्तुत ग्रन्थ को भूमिका एवं परिशिष्ट के अतिरिक्त सात अध्यायों में विभाजित किया गया है।
प्रथम अध्याय में साहित्य और समाज के अन्योन्याश्रय सम्बन्ध का विवेचन है। साथ ही संस्कृत नाट्य साहित्य और समाज का भी निरुपण किया गया है।
द्वितीय अध्याय में संस्कृत नाटक के उद्भव और विकास पर प्रकाश डाला गया है। विकास श्रृंखला में ही आलोच्य नाट्यं साहित्य का परिचय दिया गया है जिससे विषय की पृष्ठभूमि उभर कर पाठक के सामने आ गयी है।
तृतीय अध्याय राजनीतिक अवस्था पर प्रकाश डालता है। आलोच्य नाट्य साहित्य के आधार पर तत्कालीन शासन प्रणाली का निरुपण किया गया है।
चतुर्थ अध्याय में सामाजिक अवस्था का विवेचन है। समाजशास्त्रीय अध्यात्मिक दृष्टि से यह विवेचन महत्वपूर्ण है। तत्कालीन समाज के प्रत्येक पक्ष, वर्ण व्यवस्था, नारी की स्थिति, खान-पान, संस्कार, दास प्रथा, वस्त्र आदि का वर्णन इस अध्याय में किया गया है।
पंचम अध्याय तत्कालीन भारत की आर्थिकता, आर्थिकता के साधनों और कला कौशल पर प्रकाश डालता है।
षष्ठ अध्याय में धार्मिक अवस्था का विवेचन है। प्रत्येक धर्म का आलोच्य नाट्य साहित्य के आधार पर विवेचन करने का प्रयास किया गया है।
सप्तम तथा अन्तिम अध्याय में भारतीयों की नैतिक स्थिति का निरुपण किया गया है।
अन्त में उपसंहार के रुप में आलोच्य विषय के सर्वांगीण मूल्यांकन के आधार पर समस्त अध्यायों का निष्कर्ष है।
परिशिष्ट में भारत की राजनैतिक, भौगो-लिक परिस्थिति को दर्शाया है।