Description
सर गंगानाथ झा जी जैसे मनीषी की सारस्वत्त साधना का अध्ययन करना वस्तुतः भगवती भारती की अर्चना के समान है। गवेषक डॉ. अजय मिश्र ने इस गंभीर शोध के माध्यम से इसी उदात्त दायित्त्व का निर्वहण किया है। 'महामहोपाध्याय डॉ. सर गंगानाथ झा की सारस्वत साधना का अध्ययन' अपनी भव्यता और उपादेयता मे एक कोश के समान है। यह ग्रन्थ जहाँ पौराणिक तथा पारंपरिक अध्ययन की विशदता की ओर इंगित्त करता है वहीं वैज्ञानिक गवेषणा पद्धति के निकष पर भी मानक प्रमाणित होता है। मूलतः सर झा मीमांसक थे। यह परम सत्य है कि यदि सर झा की मूल तथा अनूदित रचना-समिधा का लाभ नहीं मिलता तो आज भारतीय दर्शन के उन कालजयी अध्यायों से भी हम वंचित रह जाते जो हमें सर्वपल्ली राधाकृष्णन की लेखनी से उपलब्ध हुआ। सर झा की दुर्द्धर्ष विद्वत्ता हमारी अति विशिष्ट निधि है। पाण्डित्य और प्रयाग का योग निश्चय ही अमृतत्त्व प्रमाणित हुआ है। प्रवक्ता, मीमांसक, कुलपति, संस्कृतज्ञ, भाषा शास्त्री, अनुवादक तथा धर्मशास्त्र के व्याख्याता के रूप में डॉ. सर झा को जानने का ग्रन्थकार ने विनम्र प्रयास किया है। अपनी सम्पूर्णता में यह ग्रन्थ एक रत्नजटित आरसी बन गया है जिसमें सर झा की छवि अपनी सम्पूर्णता में देखी जा सकती