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वेदान्तसिद्धान्त मुक्तावली-Vedantsiddhant Muktavali

Vedanta Siddhanta Muktavali (An Old and Rare Book)
Publisher: Nag Prakashak
Language: Hindi, Sanskrit
Total Pages: 448
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 500.00
Unit price per
Tax included.

Description

आभासवाद, अवच्छेदवाद तथा प्रतिबिम्बवाद, अपने-अपने मतमतान्तरों के खण्डन-मण्डन में इस प्रकार ग्रस्त हो गये हैं कि अद्वैतमत ही गौण हो गया है, अतः उसकी तर्क-संगत-व्याख्या करने के लिए एक नये वाद का शुभारम्भ किया, जिसे दृष्टिसृष्टिवाद कहते हैं, जिसके अनुसार ब्रह्म ही अज्ञान के कारण जीवरूप में अवतरित हो जाता है। अतः जगत् का मूल कारण न तो ब्रह्म और न ईश्वर, अपितु अज्ञान ही कारण हो सकता है।
वह अज्ञान, अथवा अविद्या अनेक नहीं है, अपितु एक ही है, क्योंकि जब उसका आश्रय एवं विषय ब्रह्म एक है, तो वह अनेक हो भी कैसे सकता है ? उसी प्रकार जीव भी एक ही है, वह अनेक नहीं है। प्रतिशरीरान्तःकरण के कारण अनेक दिखाई देता है। अतः मुक्ति भी, जिस अन्तःकरण में ज्ञान का उदय होगा, उसकी होगी, शेष अन्तःकरण बद्ध ही रहेगा ।
ज्ञान और अज्ञान के भेद से दो ही सत्ता की अवस्थाएँ होती है, अतः सत्ता भी दो ही होती है। इस प्रकार अज्ञानात्मक-अवस्था में प्रातिभासिक और व्यावहारिक भेद करना किसी भी प्रकार तर्क संगत नहीं है।