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  • वेद भाष्यों का तुलनात्मक अनुशीलन-Ved Bhashyon Ka Tulnatmal Anusheelan
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वेद भाष्यों का तुलनात्मक अनुशीलन-Ved Bhashyon Ka Tulnatmal Anusheelan

Comparative Practice of Veda Commentary
Publisher: Nag Publishers
Language: Hindi, Sanskrit
Total Pages: 436
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 500.00 Sale price Rs. 600.00
Unit price per
Tax included.

Description

संसार के जितने भी धर्म स्थापित हैं उनका उद्गम उस धर्म के मूल ग्रन्थ ही माने गए हैं। इस्लाम धर्म की स्थापना कुरान शरीफ से, क्रिश्चिनिटी न्यू टेस्टामेंट से, यहूदी धर्म ओल्ड टेस्टामेंट से, पारसी धर्म जिन्दाबाद से, बौद्ध धर्म त्रिपिटिक से तथा सिख धर्म की गुरु ग्रन्थ साहब की संरचना से हुई। इन सभी ग्रन्थों के प्रति आज भी असीम श्रद्धा के भाव रखे जाते हैं।
इसे हिन्दू धर्म का दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि उसके मूलभूत धर्म ग्रन्थ वेद जो ज्ञान और विज्ञान के मात्र अगाध भण्डागार ही नहीं समझे जाते हैं, वरन् सारे संसार के प्राचीनतम ग्रन्थ होने का गौरव भी इन्हें प्राप्त है, उनकी स्मृति वर्तमान में पुरातत्व अवशेष जितनी रह गई है। देव शक्तियों से सीधे सम्पर्क का कोई सूत्र हो सकता है, तो वह वैदिक ऋचाएँ ही हैं, उन वेदों में कृषि, वानिकी, वैमानिकी, भौतिकशास्त्र, खगोलविद्या, रसायन शास्त्र, मेडिकल साइन्स, वनस्पति विज्ञान और वह सब जो अभी भी विज्ञान को अविज्ञात है, कूट-कूट कर भरा हुआ है। कठिनाई यह है कि वैदिक संस्कृत का ज्ञान होने के कारण, उस सम्बन्ध में अपेक्षित शोध के अभाव में स्वतंत्रता के इतने समय बाद भी किसी की दृष्टि इस ओर नहीं गई। सायण, सातवलेकर, दयानन्द स्वामी तथा पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने वेदों का जो सरल एवं सुबोध भाष्य हिन्दी में प्रस्तुत किया है, वह इतिहास की एक अमूल्य एवं अनूठी धरोहर बन गया है।
प्रसार अभियान का अपेक्षित स्वरूप
) इन वेदों को प्रत्येक हिन्दू के घर में शास्त्रीय कर्मकाण्ड के साथ स्थापित किया जाए।
) जो परिजन पूरा मूल्य चुका सकने की स्थिति में हैं वे सम्पूर्ण मूल्य देकर अपने घरों में वेद स्थापना संस्कार कराएँ।

) श्री सम्पन्न, श्रीमन्त जनों के घरों में इनकी स्थापना बिना मूल्य कराई जाए। किंतु उनसे यह प्रार्थना की जाए कि वे निर्धन हिन्दू परिवारों में वेद स्थापना के लिए यथाशक्ति अनुदान दें।
) निर्धन घरों में वेद स्थापना आधे मूल्य पर कराई जाए।
) इसका शुभारम्भ शीघ्रगामी होना चाहिए।
मानव को अपने जीवन में संसार यात्रार्थ जिन-जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती है, उन सभी वस्तुओं का वेदों में अगाध भंडार है। धर्म के आधार स्तम्भ वेदों को समस्त जागतिक विद्वानों ने सफल संसार का पुरातन ग्रन्थ स्वीकार किया है। मनु भगवान् ने मृत्यु के आने का सर्वप्रथम कारण वेदों के अनभ्यास को बताया है। पाठकों के मन में बड़ा आश्चर्य होगा कि वेदों में ऐसी कौन-सी करामात है, जिससे काल भी उसका अभ्यास करने वाले का कुछ नहीं कर पाता। पाठकों को विश्वास रखना चाहिए कि वेद ऐसी-ऐसी करामातों का खजाना है, जिनका किसी और के द्वारा मिलना दुर्लभ है। यद्यपि वेद का मुख्य प्रयोजन अक्षय स्वर्ग (मोक्ष) की प्राप्ति है, तथापि उसमें सांसारिक जनों के मनोरथ पूर्ण करने के भी बहुत से साधन बताये गये हैं, जिनसे ऐहिक तथा पारमार्थिक, उभयलोक की सिद्धि प्राप्त होती हैंदेबपितृमनुष्याणां वेदश्चक्षुः सनातनः' वेद को देव, पितर एवं मनुष्यों का सनातन चक्षु कहा गया है। मनु महाराज के अनुसार तीनों काल में इनका उपयोग है और सब वेद से ही प्राप्त होता है -'भूतं भव्यं भविष्यं सर्व वेदात् प्रसिध्यति '
भारतीय मान्यता के अनुसार वेद, ब्रह्मविद्या के मात्र ग्रन्थ भाग ही नहीं, स्वयं ब्रह्म हैं शब्द ब्रह्म हैं। ब्रह्मानुभूति के बिना वेद-ब्रह्म का ज्ञान सम्भव ही नहीं है, अर्थात् जिसने वेद ब्रह्म का साक्षात्कार कर लिया है, वे ही वेद की स्तुति के अधिकारी होते हैं 'अथापि प्रत्यक्षकृताः स्तोतारो भवन्ति' निरुक्त ..२। वैदिक वाङ्मय में सम्पूर्ण देवता समाये हुए हैं, जो उन्हें जान लेता है, वह उनमें समाहित हो जाता है। अर्थात् जिन्हें आर्ष-दृष्टि प्राप्त है, वे ही वेद-ब्रह्म के सत्य का दर्शन कर सकते हैं और वैदिक प्रतीकों एवं संकेतों को तथा वैदिक भाषा के रहस्य को समझ सकते हैं। तथापि वेद की मूल चार संहिताओं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद के साथ ब्राह्मण-भाग भी संलग्न रहता है; जो इन संहिताओं की व्याख्या करता है।