‘श्री श्री परात्रिशिखा’ वास्तव में एक अद्भुत और गूढ़ ग्रंथ है, जिसे प्रो. नीलकंठ गुरुतु ने अत्यंत विद्वत्ता और साधक दृष्टि से प्रस्तुत किया है। यह ग्रंथ त्रिक शास्त्र के मूल सिद्धांतों और आचार्य अभिनवगुप्त की तंत्र-दृष्टि को अत्यंत स्पष्टता और गहराई से समझाता है।
लेखक ने जटिल तांत्रिक सिद्धांतों को सरल भाषा में व्याख्यायित किया है, जिससे साधक और विद्वान दोनों ही इस पुस्तक से समान रूप से लाभान्वित हो सकते हैं। इसमें शैव दर्शन, चेतना के स्तर, और तंत्र के अनुभवात्मक पहलुओं को गहराई से उजागर किया गया है।
यह पुस्तक केवल एक दार्शनिक विवेचना नहीं है — यह एक आंतरिक यात्रा का मार्गदर्शन है। हर अध्याय पाठक को भीतर की ओर ले जाता है, आत्म-चिंतन और अनुभव की ओर।
यदि आप त्रिक दर्शन, तंत्र साधना, या अभिनवगुप्त के दर्शन को समझना चाहते हैं, तो यह पुस्तक आपके अध्ययन-संग्रह का अनिवार्य हिस्सा होनी चाहिए।
संक्षेप में:
गूढ़ परंतु स्पष्ट लेखन
तंत्र और त्रिक की गहरी समझ
साधक के लिए प्रेरणादायक ग्रंथ
यह निश्चय ही हर तंत्र-ज्ञान योगी के लिए अवश्य पठनीय रत्न है।