• जे. कृष्णमूर्ति एक जीवनी: Life and Death of J. Krishnamurti
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जे. कृष्णमूर्ति एक जीवनी: Life and Death of J. Krishnamurti

Author(s): Mary Lutyens
Publisher: Rajpal & Sons
Language: Hindi
Total Pages: 288
Available in: Paperback
Regular price Rs. 499.00
Unit price per

Description

जे. कृष्णमूर्ति (Jiddu Krishnamurti) 20वीं शताब्दी के सबसे प्रभावशाली आध्यात्मिक दार्शनिकों में से एक थे। उन्होंने जीवन, शिक्षा, आत्म-ज्ञान, और स्वतंत्रता जैसे विषयों पर गहरी अंतर्दृष्टि दी, और किसी भी धार्मिक संगठन या विचारधारा से स्वयं को अलग रखा।


प्रारंभिक जीवन:

  • जन्म: 11 मई 1895, मद्रास प्रेसीडेंसी (अब आंध्र प्रदेश) के मदनपल्ले में।

  • पूरा नाम: जिद्दु कृष्णमूर्ति।

  • वे एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे और बचपन में उन्हें बीमार, कमजोर और असामान्य माना जाता था।

  • 1909 में, थियोसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख चार्ल्स वेबस्टर लीडबीटर ने कृष्णमूर्ति को "विश्व-शिक्षक" (World Teacher) के रूप में पहचाना।


'ऑर्डर ऑफ द स्टार' और अस्वीकरण:

  • थियोसोफिकल सोसाइटी ने उनके लिए Order of the Star in the East नामक संगठन बनाया।

  • लेकिन 1929 में, जब वे 34 वर्ष के थे, कृष्णमूर्ति ने उस संगठन को भंग कर दिया और कहा:

    “सत्य एक पथविहीन भूमि है।”

उन्होंने कहा कि किसी संस्था, धर्म, या गुरु के माध्यम से सत्य नहीं पाया जा सकता।


दार्शनिक दृष्टिकोण और शिक्षाएँ:

  • उन्होंने किसी भी प्रकार की आध्यात्मिक प्रथा, परंपरा या धार्मिक अनुशासन का समर्थन नहीं किया।

  • मुख्य विषय:

    • आत्म-निरीक्षण (Self-inquiry)

    • विचार की सीमाएँ

    • पूर्ण आंतरिक स्वतंत्रता

    • प्रेम, भय, और समय की प्रकृति

    • सच्चा शिक्षण और शिक्षा का उद्देश्य

उनका मानना था कि मनुष्य को अपने भीतर की चेतना को समझना होगा, न कि बाहरी अनुकरण से जीना।


लेखन और व्याख्यान:

  • उन्होंने दुनिया भर में व्याख्यान दिए — भारत, यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि।

  • उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें:

    • The First and Last Freedom

    • Commentaries on Living

    • Freedom from the Known

    • Krishnamurti’s Notebook


शैक्षिक योगदान:

  • उन्होंने भारत, अमेरिका और इंग्लैंड में कई विद्यालयों की स्थापना की, जैसे:

    • ऋषिवैली स्कूल (भारत)

    • ब्रॉकवुड पार्क स्कूल (यू.के.)

    • ओजाई स्कूल (कैलिफ़ोर्निया)


मृत्यु और विरासत:

  • मृत्यु: 17 फरवरी 1986, ओजाई, कैलिफ़ोर्निया, अमेरिका।

  • अंतिम शब्दों में उन्होंने कहा:

    "अब यह सब खत्म हो गया है।"

उनकी मृत्यु के बाद भी उनके विचार पुस्तकों, रिकॉर्डिंग्स, और शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से जीवित हैं।


निष्कर्ष:

जे. कृष्णमूर्ति का जीवन इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति पारंपरिक मानसिकता से ऊपर उठकर गहराई से जीवन और चेतना को समझने का मार्ग दिखा सकता है। वे न तो गुरु थे, न ही किसी पंथ के प्रचारक — वे केवल 'देखने वाले' थे।

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