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  • ज्योतिषरुद्रप्रदीप:- Jyotish Rudra pradeep (2009 Edition)
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ज्योतिषरुद्रप्रदीप:- Jyotish Rudra pradeep (2009 Edition)

Publisher: Shrimati Radha Joshi
Language: Hindi
Total Pages: 434
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 900.00
Unit price per
Tax included.

Description

अपने रचनाकाल शकाब्द १६५८ सन् (१७३६ ) से २७२ वर्षों के बाद पहली बार यह ग्रंथ हिन्दी - व्याख्या के साथ छपकर आपके हाथों में है। यह कृति राजा कल्याणचन्द के शासनकाल (१७२६-१७४७) के समय की जान पडती है। विशेषतः कुमाऊँ के ज्योतिर्विदो में इसकी प्रसिद्धि इसके रचनाकाल से ही पंड़ित जी लोगों के कानों में गूँजती रही । किन्तु ये दैवज्ञ इस ग्रंथ की प्रकाशित प्रति से वंचित रहे। इसमें ज्योतिषशास्त्र के प्रसिद्ध पचास से अधिक ग्रंथों का निचौड़ है। इस ग्रंथ में फलित ज्योतिष के मूल सिद्धांत उजागर हुए हैं। ज्योतिष शास्त्र का यह ग्रंथ उपयोगी, प्रमाणिक एवं लोकप्रिय है। अतः यह ज्योतिष विद्या की कसौटी है। ग्रंथ के इस द्वितीय भाग में विषय को स्पष्ट करने के लिए हिन्दी व्याख्या में लगभग १००० से अधिक संस्कृत श्लोक एवं एक हजार ग्रंथो एवं ग्रंथकारों के नाम है। परिवर्धित विषयों की संख्या ३०० से भी अधिक है। चक्र एवं तालिकाऐं भी विषय को स्पष्ट करने के लिए दी गयी है। दैवज्ञों के अनुभव के साथ ही प्राचीन हस्तलेखों से भी विषय को स्पष्ट करने के लिए सामग्री जुटाई गयी है । इसमें ज्योतिषविद्या के कठिन विषय सरल रूप में उजागर हुए हैं। इस ग्रंथ के द्वितीय भाग के सातवें अध्याय में राजनीति स्वरविज्ञान त्रिविधानाडी - इडा, सुसुम्ना, विविध शकुन, स्वप्नविज्ञान, यात्रादि के मुहूर्त पर विचार हुआ है। तथा आठवें अध्याय में भारतीय एवं चीनी वास्तुशास्त्र - दोनों की तुलनात्मक समीक्षा, भारतीय वास्तुशास्त्र के विविध पक्षों पर बड़े विस्तार से लोकोपयोगी मीमांसा की गयी है। इस ग्रंथ की भाषाशैली सरल एवं सुगम है। कोई भी व्यक्ति इस ग्रंथ के तीनों भागों को पढ़कर घर बैठे किसी की भी जन्मपत्री बनाकर फलादेश कर सकता है। इसमें तिथि, वार, नक्षत्रादि के साथ ज्यौतिष शास्त्र के विविध पक्षों की संकाओं
पिंगला, का समाधान भी है। संस्कृतभाषा को नहीं जानने वाले लोग भी इसका अध्ययन कर पूरा लाभ उठा सकते है। पुरोहितों, पण्डितों, गृहस्थों एवं शोधकर्ताओं के लिए यह ग्रन्थ समानरूप से उपयोगी एवं ज्ञानवर्द्धक है। यूजीसी की बृहत् शोधपरियोजना के अन्तर्गत सम्पादित इस शोधकृति का प्रकाशन एक आदर्श प्रतिमान
है।