
दीप्तागम (Diptagama) जैन धर्म से संबंधित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो जैन धर्म के सिद्धांतों और उपदेशों को प्रस्तुत करता है। इस ग्रंथ में भगवान महावीर के उपदेशों और उनके धार्मिक जीवन की व्याख्या की गई है। यह ग्रंथ विशेष रूप से जैन तत्त्वज्ञान, आध्यात्मिक साधना, और धर्म के आचार-व्यवहार पर आधारित है।
दीप्तागम का अर्थ होता है "आध्यात्मिक ज्ञान का दीप" या "ज्ञान का उजाला"। यह ग्रंथ धार्मिक दृष्टिकोण से जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक का कार्य करता है, जो उन्हें जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। इसमें भगवान महावीर के उपदेशों के माध्यम से सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, साधना और कर्म जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की जाती है।
भगवान महावीर के उपदेश:
दीप्तागम में भगवान महावीर के धार्मिक उपदेशों का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इन उपदेशों में व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक उन्नति, कर्मों की शुद्धता, और आध्यात्मिक साधना के महत्व को समझाया गया है।
आध्यात्मिक साधना:
इस ग्रंथ में ध्यान, तपस्या, और संयम की महत्ता को प्रमुखता से बताया गया है। इन साधनाओं के माध्यम से ही आत्मा की शुद्धि होती है और मोक्ष प्राप्ति की दिशा में कदम बढ़ाए जाते हैं।
कर्मों का महत्व:
दीप्तागम में कर्म के सिद्धांत का विस्तृत वर्णन है। भगवान महावीर ने बताया कि कर्म आत्मा को जन्म-मृत्यु के चक्र में बांधता है, और इसे समाप्त करने के लिए सही कर्म करना आवश्यक है।
आध्यात्मिक आचार-व्यवहार:
जैन धर्म के अनुयायियों को भगवान महावीर ने सत्कर्मों, सत्य बोलने, अहिंसा के पालन, दया, विनम्रता और समानता जैसे गुणों को अपनाने की प्रेरणा दी है। दीप्तागम में इन धार्मिक आचारों का भी वर्णन किया गया है।
मोक्ष प्राप्ति:
इस ग्रंथ का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में मार्गदर्शन करना है। यह समझाता है कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए आत्मा को शुद्ध करना और सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त करना आवश्यक है।
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