
नैषधीयचरित (Naishadhiya Charita) संस्कृत साहित्य की एक महत्वपूर्ण काव्य रचना है, जिसे प्रसिद्ध कवि श्रीहर्ष ने रचा है। यह काव्य नल और दामयन्ती की कथा पर आधारित है, जो महाभारत में वर्णित एक प्रसिद्ध प्रेमकथा है।
यह काव्य नल और दामयन्ती के प्रेम, उनकी कठिनाइयों और उनके पुनः मिलन की कथा को प्रस्तुत करता है। इसमें नल की दुर्दशा, उनके द्वारा अपना राज्य हारने, और दामयन्ती से दूर होने की घटनाएँ प्रमुख रूप से वर्णित की गई हैं। काव्य का अंत नल और दामयन्ती के सुखी पुनर्मिलन के साथ होता है।
काव्य की संरचना: नैषधीयचरित में कुल 18 सर्ग (अध्याय) होते हैं, जिनमें नल और दामयन्ती के जीवन की प्रमुख घटनाएँ वर्णित की गई हैं। प्रत्येक सर्ग में कविता का उच्चतम शिल्प और सौंदर्य है।
कविता की शैली: श्रीहर्ष ने इस काव्य में अनुप्रास, अलंकार और अन्य काव्यशास्त्र के नियमों का बेहतरीन प्रयोग किया है। उनकी कविता का लय और रस पाठकों को आकर्षित करता है। श्रीहर्ष की शैली को अत्यधिक काव्यात्मक और भावनात्मक माना जाता है, जो गहरे अर्थ और सुंदर चित्रण से भरी होती है।
नल और दामयन्ती की कथा: यह काव्य नल और दामयन्ती के प्रेम और उनके जीवन के संघर्षों को विस्तार से चित्रित करता है। नल, जो पहले एक समृद्ध और शक्तिशाली राजा थे, अपने भाई के साथ जुआ खेलने के कारण अपना राज्य खो बैठते हैं। इसके बाद उन्हें अपनी पत्नी दामयन्ती से दूर होना पड़ता है। उनके जीवन की कठिनाइयाँ और संघर्ष प्रेम और भाग्य पर आधारित हैं। अंततः, नल और दामयन्ती का पुनर्मिलन होता है, जो काव्य का सुखद अंत है।
दार्शनिक संदेश: नैषधीयचरित केवल एक प्रेमकथा नहीं है, बल्कि इसमें जीवन, प्रेम, भाग्य और कर्तव्य के दार्शनिक पहलुओं पर भी गहन विचार किया गया है। काव्य यह सिखाता है कि किस तरह कर्तव्य और समर्पण से व्यक्ति अपनी समस्याओं का समाधान पा सकता है।
काव्य की महत्वता: यह काव्य न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह संस्कृत साहित्य में एक आदर्श महाकाव्य माना जाता है। श्रीहर्ष ने इस काव्य के माध्यम से प्रेम, दया, और मानवता के उच्चतम आदर्शों को प्रस्तुत किया है।
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