

Description
श्रीपाल राजा का रास" एक प्रसिद्ध जैन धार्मिक कथा है, जिसे विशेष रूप से श्रावक समाज में श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ा और सुना जाता है। इसे श्रीपाल-रस या श्रीपाल-रास भी कहा जाता है। यह कथा नैतिकता, धर्म और श्रद्धा का संदेश देती है, और विशेष रूप से अष्टानिका पर्व या आयंबिल जैसे धार्मिक अवसरों पर पढ़ी जाती है।
श्रीपाल राजा और मायणा सुंदरी की कथा का सारांश:
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श्रीपाल एक कोढ़ रोगी था, जिसे समाज ने त्याग दिया था।
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मायणा सुंदरी एक जैन श्राविका थी, जिसने एक व्रत के प्रभाव से यह निश्चय किया था कि वह श्रीपाल से ही विवाह करेगी, चाहे वह किसी भी स्थिति में हो।
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मायणा सुंदरी ने श्रीपाल से विवाह किया और उसकी सेवा व भक्ति से उसका रोग ठीक हो गया।
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दोनों ने मिलकर जैन धर्म का प्रचार किया और अनेक पुण्य कार्य किए।
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अंत में दोनों ने केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष को प्राप्त किया।
इस रास का महत्व:
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यह रास जैन व्रतों और तप की शक्ति को दर्शाता है।
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सेवा, श्रद्धा, समर्पण और सत्य धर्म के पालन से जीवन में चमत्कारी परिवर्तन संभव है – यह इसका मूल संदेश है।
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यह रास धार्मिक आयोजनों में सामूहिक रूप से गाया या पढ़ा जाता है।