

Description
“सुंदरकांड मूल” (कोड-1583) गोस्वामी श्री तुलसीदासजी महाराज द्वारा प्रणीत श्रीरामचरितमानस का एक महत्वपूर्ण अंश है। यह पुस्तक हिंदी साहित्य की सर्वोत्कृष्ट रचनाओं में से एक है। श्रीरामचरितमानस में आदर्श राजधर्म, आदर्श गृहस्थ-जीवन, आदर्श पारिवारिक जीवन आदि मानव-धर्म के सर्वोत्कृष्ट आदर्शों का सुंदर विवेचन किया गया है। इस ग्रंथरत्न में सर्वोच्च भक्ति, ज्ञान, त्याग, वैराग्य, भगवान की आदर्श मानव-लीला और गुण प्रकट होते हैं, जो अनमोल रत्न की भाषा में व्यक्त किए गए हैं। इस पुस्तक का आशीर्वादात्मक भाव से पाठ करने से और इसके उपदेशों के अनुरूप आचरण करने से मनुष्य मात्र के कल्याण के साथ भगवत्प्रेम की सहज ही प्राप्ति संभव होती है।
“सुंदरकांड मूल” पुस्तक में श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड अध्याय को संक्षेपित रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह अध्याय भगवान श्रीराम के पवित्र संक्षेपणांश को संग्रहित करता है और भक्तों को उनके धर्म के महत्व को समझाता है। श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड में भगवान श्रीराम और वानर सेना के उत्कृष्ट लीलाओं का वर्णन किया गया है जो भक्तों के अंतरंग धर्म के प्रति आदर्श है।
“सुंदरकांड मूल” में श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड के पाठ करने की प्रामाणिक विधि, उसके अर्थ समझने के लिए टीका, पाठ के लाभ और आरती जैसे अनेक विषयों पर विस्तृत चर्चा की गई है। यह पुस्तक श्रीरामचरितमानस के प्रेमी पाठकों के लिए एक अनमोल सम्प्रेरणा स्रोत है जो उन्हें भगवत्प्रेम के प्रति अधिक समर्थ बनाती है। इस पुस्तक के पाठ से पाठकों को आध्यात्मिक उन्नति
की प्राप्ति होती है और उन्हें अध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। गीताप्रेस के इस प्रसिद्ध ग्रंथ “सुंदरकांड मूल” को पढ़कर पाठक अपने जीवन में धर्म के मार्ग पर सभी धार्मिक आदर्शों को अनुसरण करने में प्रेरित होते हैं।