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आचार्य अभिनवगुप्त संस्कृत वाङ्मय के महत्वपूर्ण और प्रभावशाली विद्वान हैं। उनका अवदान विशेष रूप से तात्त्विक, दार्शनिक, और काव्यशास्त्र के क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण है। उनके योगदान को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
1. काव्यशास्त्र (अस्थिका काव्यशास्त्र): अभिनवगुप्त ने काव्यशास्त्र पर महत्वपूर्ण कार्य किया। उनका ग्रंथ 'अभिनवभारती' संस्कृत काव्यशास्त्र पर एक प्रमुख टिप्पणी है, जो भट्टनायक के 'नाट्यशास्त्र' पर आधारित है। इसमें उन्होंने नाट्यशास्त्र के सिद्धांतों को स्पष्ट किया और काव्य के सौंदर्यशास्त्र को विस्तार से प्रस्तुत किया।
2. तत्त्वज्ञान (शिवदर्शन): अभिनवगुप्त ने तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने 'त्रैच्छिकशिव' (शिव की तीन प्रमुख उपासना पद्धतियों) और 'शिवसूत्र' जैसे ग्रंथों पर टिप्पणी की। उनके विचार शिववाद और तांत्रिक परंपराओं को प्रकट करते हैं, जो उनके समय के धार्मिक और दार्शनिक विचारों को उजागर करते हैं।
3. नाट्यशास्त्र: अभिनवगुप्त ने 'अभिनवभारती' में नाट्यशास्त्र के सिद्धांतों को बहुत स्पष्ट और व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया। उन्होंने भाव (भावना), रस (सौंदर्य) और अवस्थाएँ (अवस्था) के सिद्धांतों को विशद किया, जो कि भारतीय नाट्यकला और साहित्य में आज भी महत्वपूर्ण हैं।
4. तन्त्रशास्त्र: अभिनवगुप्त ने तन्त्रशास्त्र में भी गहरा योगदान किया। उनके 'तन्त्रालोक' और 'प्रत्यभिज्ञा' जैसे ग्रंथ तन्त्रिक विचारों और धार्मिक तात्त्विकता को समझाने में सहायक हैं। उन्होंने तंत्रों के रहस्यों को सरल और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया।
आचार्य अभिनवगुप्त का कार्य भारतीय सांस्कृतिक और दार्शनिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनके विचार और ग्रंथ आज भी साहित्य, नाट्यकला, और तत्त्वज्ञान के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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