• सृष्टि और उसका प्रयोजन: Creation and Its Reason
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सृष्टि और उसका प्रयोजन: Creation and Its Reason

Author(s): Shivendra Sahaya
Publisher: Vishwavidhalaya Prakashan
Language: Hindi
Total Pages: 76
Available in: Paperback
Regular price Rs. 99.00
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Description

आत्मज्ञान व अनुभव के आधार पर मेहेर बाबा ने सृष्टि और उसका प्रयोजन जैसे गूढ़ प्रसंग को एक सरल विषय के रूप में 'गॉड स्पीक्स' नामक अपने मथ में प्रस्तुत किया है।

'गॉड स्पीक्स' के अनुसार सृष्टि के अन्तर्गत आत्मा की चेतना का विकास वस्तुतअचेतन ब्रह्म की चेतन परमात्मा की ओर यात्रा है । ईश्वर जो अनादि तथा अखण्ड हेंअनेक स्वरूपों में विभिन्न प्रकार के अनुभव करता हुआस्वयं अपने ही द्वारा निर्धारित बंधनों को पार करते हुए अन्ततमानवस्वरूप के पुनर्जन्म व अन्तर्मुखी यात्रा के द्वारा आत्म-चेतना प्राप्त करता है।

अंग्रेजी भाषा में रचित गॉड स्पीक्स का अनुवाद अनेक भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में हो चुका है तथा हो रहा है। इस गूढ़ विषय को सहज रूप से समझने के लिये सरल हिन्दी में इसके सारांश की आवश्यकता बहुत समय से प्रतीत हो रही थी। इसी भाव से प्रेरित होकर मेहेर बाबा द्वारा रचित इस महान् ग्रन्थ का सारांश किया गया है।

सारांश करते समय मूल ग्रन्थ के विषय को व्यक्त करने का ढंगआशय तथा भाव की शुद्धता यथावत् बनी रहेइस बात का विशेष ध्यान रक्खा गया है। पुनरावृत्तियों को कम करके अनुरूपता के आधार पर विषयों को उनके उसी क्रम में रखने का प्रयास किया गया जैसा कि मूल मथ गॉड स्पीक्स में है । किसी गूढ़ शब्द या प्रसंग को स्पष्ट करने के लिये जो व्याख्यायें परिशिष्ट में दी गई हैं वे भी मेहेर बाबा के ही वचन हैं।

गॉड स्पीक्स

'गॉड स्पीक्स' मेहेर बाबा के सूत्रवत प्रवचनों का संग्रह है । इस पुस्तक में मेहेरबाबा ने बताया कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व समय अथवा मन की कोई कल्पना नहीं थीअतएव ईश्वर के विषय में यही कहा जा सकता है कि वह प्रारम्भ के आरम्भ के भी पहले से विद्यमान है और एकमात्र वही है । प्रारम्भ में वह अपार ब्रह्मएक गाढ़ी निद्रा में था । अपने को जानने की जिज्ञासा ने उसकी शांतअखण्ड व अपार अवस्था में एक लहर पैदा की । इसके परिणामस्वरूप ईश्वर की अपारता के एक बिन्दु (ओऽम् बिन्दु) से सृष्टि का प्राकट्य हुआ । यह परमात्मा में निहित 'कुछ नहीं' का उभार था । सर्वज्ञ जब स्वयं अपने से पूछे कि 'मैं कौन हूँ?' तो यह अपने आपमें एक विरोधाभास है । अतएव इस प्रश्न के साथ ही आत्मा में परमात्मा से पृथकता की प्रथम सीमित चेतना तथा प्रथम सीमित संस्कार स्थापित हो गये । राही से दैवी स्वप्न का प्रारम्भ होता है। आत्मा की चेतना ने सृष्टि के माध्यम से अपना विकास प्रारम्भ किया-पत्थरखनिजवनस्पतिकीटपतंगमछलीपक्षी व पशुयोनियों से होते हुए मनुष्ययोनि में आकर उसे पूर्ण चेतना प्राप्त हो गई। पूर्ण चेतना के साथआत्मा को अपने परमात्म स्वरूप का ज्ञान प्राप्त हो जाना चाहिये । किन्तु यह विडम्बना है कि विकास की प्रक्रिया के बावजूदविविध संस्कारों के दृढ़ बंधन के कारण चेतन आत्मा अपने को संसार में लिप्त एक साधारण मनुष्य मान लेती है। मनुष्ययोनि में अनेक बार जन्म व मृत्यु के चक्र के बाद संस्कारों के बंधन ढीले होते हैं । तब मनुष्य का चित्त संसार से उचटने लगता है और वह अन्तर्मुखी होकर आध्यात्म-मार्ग पर आरूढ़ होता है ।

प्राणशरीर द्वारा प्राणभुवन व मन के द्वारा मनभुवन के विभिन्न व अलौकिक अनुभवों के पश्चात् चेतन आत्मा विज्ञानभुवन में प्रवेश करती है । यहाँ आकर उसके संबंध कासृष्टिउसमें निहित तीनों भुवन तथा स्थूलप्राण व मन तीनों शरीरों सेसम्पूर्ण रूप से विच्छेद हो जाता है। परमात्मा अपने मूल जिज्ञासा 'मैं कौन हूँका उत्तर 'मैं परमात्मा हूँ' के रूप में प्राप्त कर लेता है ।

यह जागृत ब्रह्म की निर्विकल्प अवस्था हैजहाँ परमात्मा को अपने अनन्त ज्ञानसामर्थ्य व आनन्द की चेतना तो है पर सामान्य चेतना नहीं है (सृष्टि की चेतनादेह का भानसांसारिक बातों को समझने व करने की क्षमता का अर्थ सामान्य चेतना है)

निर्विकल्प अवस्था प्राप्त करने के पश्चात परमात्मा जब सामान्य चेतना भी प्राप्त करता है तब वह पूर्ण पुरुष अर्थात् सद्गुरु कहलाता है जब चेतन ब्रह्म सीधे मानवस्वरूप धारण करता है तब उसे अवतार कहते हैं

अचेतन ब्रह्म से चेतन परमात्मा तक की यह यात्रा सृष्टि के आदि से लेकर अनन्तकाल तक चलती रहती है।

गॉड स्पीक्स में सृष्टि और उसका प्रयोजन के विषय को समझाने के बादमेहेरबाबा ने कहा कि जो इस मार्ग पर चलना चाहते हैं उनमें से प्रत्येक को अपने विवेक के प्रकाश में उस पद्धति का अनुसरण करना चाहिये जो उसकी आध्यात्मिक प्रवृत्तिभौतिक योग्यता और उसकी बाहरी परिस्थिति के सबसे अधिक अनुकूल हो सत्य एक हे पर उस तक पहुँचना साररूप से व्यक्तिगत है। ईश्वर तक पहुँचने के उतने हो मार्ग है जितनी कि मनुष्यों की आत्मायें हैं।