Description
भक्ति पुष्प का यह गुलदस्ता
आदिदेव ऋषभदेव ने आदिमानव को सिखाई गई 72 कलाओं में संगीत एक महत्वपूर्ण कला है। संगीत के माध्यम से गंभीर और दार्शनिक विचारधारा भी मानव हृदय पर चिरस्थाई प्रभाव डालती है। दार्शनिक कवियों ने तथा आध्यात्मिक भक्तों ने इसी संगीत के सहारे बडी गंभीर और अति सूक्ष्म बातें साधारण जनता तक पहुँचाई है।
प्रभुभक्ति मानव को दुःखों से दूर ले जाकर अपूर्व एवं अवर्णनीय शांति प्रदान करती है। परमात्मा की स्तवना या स्तुति करने से आत्मा के प्रत्येक प्रदेश में परमात्म प्रेम का प्रवाह पूरे वेग से बहने लगता है। परमात्म भक्ति के प्रभाव से पूर्व संचित पाप पूंज भस्म हो जाते है। स्व की जगह सर्व का विचार पैदा होता है। भाव भरे मंगलगीतों के गान से अमृत जैसी मधुरता का आस्वाद भक्त को प्रत्यक्ष अनुभव में आता है। वह प्रभुभक्ति का ही प्रभाव था जिसके प्रताप से अष्टापद तीर्थ पर राजा रावण ने तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन किया था।
भक्तों को भगवान से मिलानेवाली "प्रभुभक्ति" ही है। प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से इसी बात को सत्यापित करने का भरसक प्रयास किया गया है। साथ ही आपको देने जा रहे है बहुउपयोगी अनेक जानकारी। आप अपने यात्रा को व्यवस्थित कर सके इस हेतु भारत भर के सभी तीर्थों के फोन नंबर एस.टी.डी. कोड के साथ दे रहे हैं। लोग कुछ करना चाहते, मगर कई बार जानकारी के अभाव में कर नहीं पाते। इस हेतु प्रदान कर रहे है जीवदया तथा मानवसेवा की जानकारी, और प्रस्तुत है महावीर जीवन दर्शन।
पुस्तक प्रकाशन में जिन महानुभावों ने अर्थ सहयोग प्रदान किया उसके लिए हम आभार प्रकट करते है एवं आभारी है उन सभी महानुभावों के जिनके प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सहयोग, चिन्तन-मनन से यह पुस्तक आप तक पहुँचाने में हम सफल हुए हैं।
"भूल" तो भुलाने के लिए होती है। जिनशासन की आज्ञा के विरूद्ध लेखन के लिए हम क्षमा प्रार्थी है। भूल सुधारने की जिम्मेदारी आप पर सौंपते है, आपके सुझावों का हमें इंतजार रहेगा।
"भक्ति पुष्प का यह गुलदस्ता" चुतर्दिश सौरभ फैलाये ऐसी देवाधिदेव से प्रार्थना करते हैं जिसका हमें इंतजार रहेगा। यह 'गुलदस्ता' आपके आत्मोत्थान का माध्यम बने, ऐसी मंगलकामना करते हैं।