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श्रौतयागों में प्रयुक्त महत्त्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दों की विवेचना

Explanation of Technical Terms used in Shrauta Yajnas
Publisher: Nag Publishers
Language: Hindi
Total Pages: 343
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 500.00 Sale price Rs. 600.00
Unit price per
Tax included.

Description

वैदिक साहित्य के अन्तर्गत विवेचित विषयों में श्रऔतयागों का विशिष्ट महत्त्व है। ये श्रौतयाग वेदों के प्राण हैं। आचार्य सायण ने वैदिक संहिताओं की यज्ञ-परक व्याख्या कर यज्ञों की महती महत्ता स्वीकार की है। ये यज्ञ मानव के श्रेय प्रेय के साधक हैं। यज्ञों के सम्पादन से मनुष्य स्वास्थ्य, समृद्धि नैतिक सम्बल तथा पर्यावरण की शुद्धता प्राप्त करता है। यज्ञ विष्णुरूप होने से परमार्थ का भी साधक है। इन श्रौतयागों के प्रमुख

स्रोत ब्राह्मण ग्रन्थों तथा श्रौतसूत्रों में प्रयुक्त पारिभाषिक पदों की बहुलता ने इन्हें जनमानस के लिए अतीव क्लिष्ट तथा दुर्बोध बना दिया है। पारिभाषिक शब्दों को समझे बिना इन ग्रन्थरत्नों में निहित अर्थरत्नों को हृदयंगम नहीं किया जा सुकता।

वस्तुतः किसी भी शास्त्र में पारिभाषिक पदों के प्रयोग का लक्ष्य अभिव्यक्ति की चारुता, अर्थगाम्भीर्य, संक्षिप्तता एवं भावों की सहज संप्रेषणीयता होता है। श्रौतसूत्रों में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्द कहीं-कहीं अन्वर्थक हैं, तो कहीं विचारों की विशदता और भावों की गहनता के समन्वयक। ये व्याकरण तथा भाषा-विज्ञान के भी स्रोत हैं। श्रौत यागों की वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता तथा अवबोधकता में पारिभाषिक शब्दों की उपादेयता, सार्थकता एवं महत्ता को दृष्टिपथ में रखकर उनमें प्रयुक्त होने वाले महत्त्वपूर्ण पारिभाषिक पदों की ऐतिहासिक, व्याकरणिक एवं 'श्रौतपरम्परा की दृष्टि से यहाँ विवेचना करने का प्रयास किया गया है। इस प्रयास से वैदिक अध्येताओं, श्रौत परम्परा में रुचि रखने वाले सुधी पाठकों, याज्ञिकों तथा वैदिक धरोहर के | संरक्षकों को सहायता मिलेगी। इस पुस्तक से वैदिक अध्ययन के अनछुए आयामों का भी प्रकाशन होगा।

डॉ, श्रीमती प्रमोद बाला मिश्रा का जन्म 21 सितम्बर 1949 को बलरामपुर (उ० प्र०) में हुआ। आपकी उच्च शिक्षा पंडित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर में सम्पन्न हुई। आपने 1970 में एम. ए. (संस्कृत) की परीक्षा में प्रथम श्रेणी के साथ प्रथम स्थान प्राप्त किया। एम.ए. उत्तरार्द्ध में विशिष्टीकरण का क्षेत्र वैदिक वाङ्मय था। इसी क्षेत्र में अनुसन्धान करके आपने पी.एच.डी. की उपाधि ग्रहण की। नवीं कक्षा से लेकर एम.ए. तक आपको योग्यता छात्रवृत्ति प्राप्त हुई तथा शोध-अवधि में तीन वर्षों तक यू.जी.सी से कनिष्ठ शोध छात्रवृत्ति मिली। आप संस्कृत भाषा, दर्शन, साहित्य और वैदिक साहित्य की विशिष्ट अध्येता है। अब तक आपकी तीन कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपके पर्यवेक्षण में 25 शोधार्थी पी.एच.डी. उपाधि प्राप्त कर चुके हैं और वर्तमान में आठ छात्र कार्यरत हैं। आपके 20 शोध-लेख राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न जर्नल्स् में प्रकाशित हो चुके हैं। आप राष्ट्रीय संगोष्ठियों तथा सम्मलनों में 25 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत कर चुकीं हैं। आकाशवाणी से आपकी 80-90 वार्ताएँ प्रसारित हो चुकी हैं। आपने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की दो परियोजनाओं को पूर्ण किया है -

1. शिक्षा वेदाङग: एक परिचय

2. ऋग्वेद प्रातिशाख्यम् तथा वाजसनेयि की

प्रातिशाख्यम्

तुलनात्मक समीक्षा।