Description
मनुष्य ने पारिवारिक जीवन प्रारंभ किया, तभी से कहानियों का सिलसिला भी प्रारंभहुआ। दादियों और नानियों ने इस क्रम को बनाये रखने में शायद सबसे अधिक योगदान किया। मनुष्य ने जीवन-क्रम में जो-जो परिवर्तन किये, वे सब कहानियों में भी उभरे। क्वचित् परिवर्तनों की पहल कहानी में हुई और क्वचित् मनुष्य में। कहानी ने मनुष्य को बदला और मनुष्य ने कहानी को।
कहानी-जगत् व्यवहार-जगत् से क्वचित् भिन्न भी होता है। व्यवहार-जगत् में पशु-पक्षी न बातें करते हैं और न नीति आदि के संबंध में कोई ज्ञान ही रखते हैं, परन्तु कहानी-जगत् में यह सब होता है। वाल-कहानियों में तो बहुधा ऐसा होता ही है। इसलिए कहा जा सकता है कि कहानी की सत्यता-असत्यता घटना की दृष्टि से नहीं, किन्तु उसमें प्रतिपादित तथ्य की दृष्टि से ही आंकी जाती है। वस्तुतः कहानी का तथ्य ही उसका सत्य एवं शाश्वत तत्त्व होता है।
कहानी बालकों को ही नहीं, युवकों और वृद्धों को भी उतनी ही प्रिय है। हर कोई उससे प्रेरणा प्राप्त करता है। उसके विभिन्न पात्र, विभिन्न प्रकृति के व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसीलिए हर प्रकार का व्यक्ति उसके किसी-न-किसी पात्र को अपनी मनोदशा या आदर्श के अनुरूप पा लेता है। मनुष्य सहज रूप में उच्चता या आदर्श को पसंद करता है। अतः रामायण के श्रोता या पाठक के मन में अनायास ही यह प्रेरणा जागती है कि उसे राम जैसा बनना चाहिए, रावण जैसा नहीं। जो कहानी अपने श्रोता या पाठक के मन में ऐसी सत् प्रेरणा जगाने में सफल होती है, वही वस्तुतः सफल कहानी कही जा सकती है। कहानी की सफलता ही उस लेखक की सफलता होती है।
मुनि कन्हैयालालजी कर्मशील व्यक्ति हैं और साथ ही अपनी धुन के पक्के भी। वे अभी आसाम (पूर्वांचल) में विहरण करते हुए धर्मसंघ की अच्छी प्रभावना कर रहे हैं। उन्होंने प्रस्तुत पुस्तक 'बाल कहानियां' में कुछ लोक-प्रचलित कहानियों को सरल शब्द-परिधान में प्रस्तुत किया है। एतद्विषयक उनका प्रयास और उत्साह प्रशंसनीय है। इससे मनोरंजन के साथ-साथ बालक-बालिकाओं का मन आदर्श की ओर उन्मुख