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प्रस्तुत पुस्तक चार खण्डों में विभक्त है । प्रथम खण्ड में हस्ताकृति, अंगुष्ठभेद, हाथ का रंग-रूप तथा उंगलियां, नाखून, उनके रंग, उनपर चन्द्रधारियां, कौड़िया, रंग- भेद, ग्रहों के नाम, शुभाशुभ क्षेत्रों का आपसी सम्बन्ध और उनके प्रभाव बताए गए हैं । द्वितीय खण्ड में हस्तरेखाएं रेखाओं के उद्गम-स्थान व उनकी व्यापकता, मस्तिष्क व शीर्ष-रेखा, हृदय, रवि, भाग्य, स्वास्थ्य व विवाह-रेखा का वर्णन है । तृतीय खण्ड में हस्तचिन्ह, वृहत्-चतुर्भुज, न्यून त्रिभुज का रेखाओं पर प्रभाव, कोण, बिन्दु वर्ग, रेखा-जाल, नक्षत्र का ग्रह क्षेत्रों तथा रेखाओं पर प्रभाव वर्णित है । चतुर्थ खण्ड में ग्रह और उसके स्वरूप तथा स्थानान्तर का प्रभाव, शनि ग्रह, रवि, बुध, वरुण, शुक्र, मंगल, इन्द्र चिन्ह का स्थानान्तर से फ ल व प्रभाव, शुभाशुभ घटनाओं के समय निकालने की रीति का विस्तृत वर्णन है ।
हस्त-सामुद्रिकशास्त्र के अन्तर्गत रेखा-ज्ञान अपना एक विशेष स्थान रखता है, जिसके प्राप्त हो जाने पर मनुष्य सहज ही त्रिकालज्ञ हो जाता है । हस्तरेखाविद्या के जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक अति लाभदायक है । इसकी भाषा सरल और सरस है । चित्रों की सहायता से हस्तावलोकन की क्रिया को सरल बना दिया गया है ।
दो-शब्द
आधुनिक वैज्ञानिक युग में जबकि विज्ञानवेत्ता अपने चतुर्दिश वैज्ञानिक आविष्कारों द्वारा समस्त सौर्य जगत् परिधि को परमाणु शक्ति से केन्द्रित करके, अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए सतत प्रयत्न करते हुए दृष्टिगोचर हो रहे हैं, तो फिर हस्तावलोकन शैली ही किस प्रकार पीछे रह सकती है । यह भी एक वैज्ञानिक अंग है जिसकी पूर्ति होना भी सामाजिक मानव के लिए नित्यप्रति कार्य-प्रणाली को सुचारू रूप से चलाने के लिए अत्यन्त आवश्यक हो जाता है । क्योंकि जीवन क्षणिक है और ज्ञान का सिन्धु अगर है फिर भी समय रहते जो कुछ भी जान लिया जाय वही थोड़ा है । उसी ज्ञातव्य वस्तु की जानकारी के लिए इस चन्द्र-हस्त विज्ञान नामक पुस्तक का प्रादुर्भाव हुआ है ।
यह एक पारिवारिक पुस्तक है जो कि इष्ट-मित्र, भाई-बन्धु, माता- पिता इत्यादि सभी निकट सम्बन्धी सामूहिक रूप से निःसंकोच बैठकर स्वेc-छानुसार अपने प्रारब्ध तथा भाग्य का निर्णय बड़ी ही सरल रीति से कर सकते है । यह अग्ने ढग की हिन्दी मे एक ही पुस्तक है जिसको भाषा सरस, सरल, चित्ताकर्षक, महत्त्वपूर्ण तथा अत्यन्त ही रोचक है । इसमें प्रत्येक प्रकार की खपत रेखाओं तथा हस्ताकित महत्वपूर्ण चिन्हों फा मान-चित्र यथा समय तथा यथा स्थान पाठ्य क्रमानुसार देकर हस्ता- वलोकन किया को और भो सजीव, सरल तथा मनमोहक बना दिया गया है । बस अपना हाथ खोलिये ओर साय यह पुस्तक भी खोलिए और देखिए कि आपका हाथ पुस्तक के किस हाथ से अपनी साम्यता ररवता है । जिस नम्बर के हाथ से आपका हाथ मिलता है उसी नम्बर के पैरे को ध्यानपूर्वक पढकर अपना भूत, भविष्य तथा वर्तमान् निर्धारित कर लीजिए । लिखितानुसार अपनी धारणा को सबल बनाकर कार्यारम्भ करने पर अवश्य ही सफलता प्राप्त होगी यह निश्चय ही समझिए ।
यह प्रस्तुत पुस्तक जो कि पाठकों के हाथ में है आज से चार वर्ष पहले ही पाठकों के हाथ में आ जानी चाहिए थी किन्तु धनाभाव समयाभाव तथा सहयोगाभाव कै कारण न आ सकी, अब श्री मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स की कृपा तथा सहयोग से आपके हाथों में प्रस्तुत है । जिसके लिए उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद दिए बिना नही रह सकता । साथ ही उन्ही के कार्यालय के कार्यकर्ता श्री मुलखराज जी सूरी, सरदार बलवंत सिंह जी सागर तथा श्री रामप्रताप जी मिश्र का बड़ा ही आभारी हूँ कि जिनके सहयोग तथा सतत परिश्रम द्वारा यह पुस्तक आज चार माह के अन्दर ही छपकर पाठकों के हाथों में शोभायमान हो गई है ।
अन्त में उन पाठकों को भी धन्यवाद दिये बिना नही रह सकता जो कि इस पुस्तक को खरीदकर अपने साथियों, सहयोगियों तथा अपने पारिवारिक जीवन को सुखद बनाकर उत्तरोत्तर उन्नति की ओर अग्रसर होकर हमारे उत्साह को बढ़ाते रहेगे और लग्न चन्द्रप्रकाश तथा प्रश्न चन्द्रप्रकाश और वर्ष चन्द्रप्रकाश आदि पुस्तकों का समर्थन कर हमारे प्रयास का उचित मूल्यांकन करेगे, धन्यवाद ।
विषय-सूची |
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प्रथम खण्ड |
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1 |
हस्तारम्भ |
1 |
2 |
हस्ताकृति |
17 |
3 |
हस्त भेद |
38 |
4 |
अंगुष्ठ भेद |
64 |
5 |
अँगूठे के तीन भाग |
79 |
6 |
हाथ का रंग रूप तथा उँगलियाँ |
95 |
7 |
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