• Ek Saniyasi ki Atmakatha Gaumukh se Gangasagar Gehari Jiwan Rekha by Krishna Gopal Chaudhary
  • Gaumukh se Gangasagar: Gehari Jiwan Rekha (Ek Saniyasi ki Atmakatha)
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Gaumukh se Gangasagar: Gehari Jiwan Rekha (Ek Saniyasi ki Atmakatha)

Author(s): Krishna Gopal Chaudhary
Publisher: Motilal Banarsidass
Language: Hindi
Total Pages: 299
Available in: Paperback
Regular price Rs. 575.00
Unit price per

Description

एक सन्यासी की आत्मकथा गोमुख से गंगासागरगहरी जीवन रेखा
यह किताब उन लोगों को ध्यान में रखकर लिखी गई है जो अपने जीवन में कभी-न-कभी घर बार छोड़ सन्यासी बनने की बात सोची तो हो लेकिन ऐसा वे कभी कर नहीं पायें। ऐसा इसलिए नहीं होता कि वे सन्यासी जीवन के प्रति आकर्षण महसूस करने लग गए है। बल्कि वे अपने वर्तमान के सामने छाए अंधकार में घुटन महसूस करने लगते है। सन्यासी के बारे में सोचते ही हमारे मन कई प्रकार की कल्पनाएं उभरने लगती है। एक तो उन महान विभूतियों की होती है जिन्हें इतिहास याद रखता है, दूसरे उक्ति को चरितार्थ करते हुए लोग। पुस्तक की शुरूआत सन् 1959 में किसी बाबा द्वारा आयोजित किसी गाँव में सम्पन्न होने वाले एक यज्ञ समारोह तथा उसका ग्रामीण वातावरण पर पड़ने वाले नाना प्रकार के प्रभावों को समझने के प्रयास के साथ होता है, दूसरे अध्याय में संत विनोबा भावे के नेतृत्व में 'सर्वोदय' अधिवेशन वर्णन करने का प्रयास है, तीसरे में सन्यासी बनने की प्रक्रिया अर्थात दीक्षा- कर्मकांड आदिका वर्णन है जिनसे मै गुजरा हूं।
कृष्ण गोपाल चौधरी जी की किताब सन्यास के प्रति आकर्षण, आग्रह और सन्यास में प्रवृत्त होने एवं पुनः सन्यास से सन्यास ग्रहण करने यानी गृहस्थ आश्रम में लौट आने वाले परिव्राजक की "आत्म कथा है। इनका बचपन और जवानी के बीच एक दशक के फासले पर दो ऐसी घटनाएं घटित होती है जो उनको बाद के वर्षों
में सन्यास की तरफ प्रवृत्त होने में उत्प्रेरक का काम करती है। इनका गांव परसियां जिला शाहाबाद, आरा, बिहार इस मायने में एक भाग्यशाली गांव था कि वहां डंडी स्वामी सोमानंद सरस्वती के रूप में एक अध्यात्मिक अभिभावक स्थायी रूप से विराजमान रहते थे। यौवन की शुरूआती दौर में ही संतों के संसर्ग एवं संवाद ने उनको यह प्रतीति करा दी थी कि सन्यास का सही समय जवानी ही है। इनके द्वारा कही गई पूरी कथा में गृहस्थ बनाम सन्यासी के युगात्मक विलोम को प्रयोग में लाया गया है। क्या गृहस्थ होना आध्यात्मिक आदर्शो के प्रति या सत्य के अन्वेषण की प्रवृत्ति को बाधित करते हैं।