• History of Pali Literature- पालि साहित्य का इतिहास
  • History of Pali Literature- पालि साहित्य का इतिहास
  • History of Pali Literature- पालि साहित्य का इतिहास
  • History of Pali Literature- पालि साहित्य का इतिहास
  • History of Pali Literature- पालि साहित्य का इतिहास

History of Pali Literature- पालि साहित्य का इतिहास

Author(s): Bhikshu Dharam Rakshit
Publisher: Siddharth Books
Language: Hindi
Total Pages: 213
Available in: Paperback
Regular price Rs. 350.00
Unit price per

Description

पालि साहित्य भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह मुख्य रूप से बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ है। पालि भाषा, जो एक प्राचीन इंडो-आर्यन भाषा है, बौद्ध धर्म के प्राथमिक ग्रंथों के लिए उपयोग की गई थी। इस साहित्य का इतिहास भारतीय साहित्य में एक विशेष स्थान रखता है, क्योंकि यह बौद्ध धर्म के विकास, उसके उपदेशों, और उनके सामाजिक तथा धार्मिक प्रभावों को दर्शाता है।

पालि साहित्य का इतिहास:

  1. पालि भाषा का प्रारंभ: पालि भाषा का उत्पत्ति भारत में हुई थी और यह संस्कृत से विकसित एक लोक भाषा थी। पालि का प्रयोग मुख्य रूप से उन लोगों द्वारा किया गया जो संस्कृत को नहीं समझते थे। यह भाषा बौद्ध धर्म के ग्रंथों में प्रमुख रूप से पाई जाती है।

  2. आधिकारिक ग्रंथ: पालि साहित्य का सबसे प्रमुख ग्रंथ है "त्रिपिटक" (Tripitaka), जिसे "पालि क canon" भी कहा जाता है। त्रिपिटक को तीन भागों में विभाजित किया गया है:

    • विनय पिटक: बौद्ध मठों और भिक्षुओं के आचार-व्यवहार को निर्देशित करने वाले नियम।
    • सुत्त पिटक: भगवान बुद्ध के उपदेशों और संवादों का संग्रह।
    • अभिधम्म पिटक: बौद्ध धर्म के दार्शनिक सिद्धांतों का विस्तार से वर्णन।
  3. बुद्ध और उनका उपदेश: बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध (सिद्धार्थ गौतम) ने पालि में उपदेश दिए थे। उनके उपदेशों का संकलन "धम्मपद" और "सुत्तनिकाय" जैसे ग्रंथों में हुआ। यह उपदेश जीवन के दुःख, उसके कारण और उससे मुक्ति के उपायों के बारे में थे।

  4. पालि साहित्य का विकास: पालि साहित्य के प्रमुख योगदानकर्ताओं में अचेलक, नागार्जुन, अश्वघोष, और अन्य बौद्ध विद्वान शामिल थे। पालि साहित्य का विकास भारत में हुआ, लेकिन समय के साथ यह श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में भी फैल गया।

  5. पालि साहित्य का प्रभाव: पालि साहित्य ने न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों पर प्रभाव डाला, बल्कि भारतीय संस्कृति और समाज पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा। यह साहित्य लोगों को अहिंसा, तपस्या, दया, और आत्मविकास के सिद्धांतों पर आधारित उपदेश देता है। इसके अलावा, यह साहित्य बौद्ध कला, चित्रकला, और स्थापत्य कला के विकास में भी प्रेरणास्त्रोत था।

  6. आधुनिक समय में पालि साहित्य: पालि साहित्य आज भी बौद्ध धर्म के अध्ययन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे कई विश्वविद्यालयों और धार्मिक संस्थाओं द्वारा अध्ययन किया जाता है। कई बौद्ध विद्वान इसे प्राचीन भारतीय दर्शन और संस्कृति को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत मानते हैं।

निष्कर्ष:

पालि साहित्य भारतीय साहित्य का एक अनमोल रत्न है, जो न केवल बौद्ध धर्म की आस्थाओं और विचारों का प्रतीक है, बल्कि भारतीय समाज के धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक इतिहास को भी समृद्ध करता है।