Parshuramvikramam: Sanskrit Mahakavyam (Sanskrit mahakavyam)

Parshuramvikramam: Sanskrit Mahakavyam (Sanskrit mahakavyam)

Author(s): Dr. Sudhikantbhardwaj Kalpah
Publisher: Bhardwaj Publishing House
Language: Sanskrit & Hindi
Total Pages: 464
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 800.00
Unit price per

Description

Parshuramavikramam" एक संस्कृत महाकाव्य है, जो भगवान परशुराम के जीवन, उनके पराक्रम, और उनके कार्यों का विस्तार से वर्णन करता है। इस महाकाव्य का नाम दो शब्दों से बना है:

  • परशुराम – विष्णु के छठे अवतार,

  • विक्रमम् – पराक्रम, वीरता, महान कर्म।

यह महाकाव्य पारंपरिक संस्कृत छंदों में लिखा गया होता है और इसमें कुल कई सर्ग (अध्याय) होते हैं, जिनमें भगवान परशुराम की कथा क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत की जाती है।


Parshuramavikramam का हिंदी सारांश:

  1. परिचय और जन्म:

    • महाकाव्य की शुरुआत भगवान परशुराम के जन्म से होती है। वे महर्षि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे।

    • उनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ लेकिन वे क्षत्रिय-धर्म (शस्त्रधारी) का पालन करते थे।

  2. शिव से परशु प्राप्ति:

    • परशुराम ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव से परशु (कुल्हाड़ी) प्राप्त किया।

    • शिव ने उन्हें युद्ध-कला में दक्ष किया।

  3. अर्जुन और क्षत्रियों का विनाश:

    • जब राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन ने उनके पिता जमदग्नि की हत्या की, तब परशुराम ने प्रतिशोध लिया।

    • उन्होंने 21 बार पृथ्वी से अधर्मरत क्षत्रियों का संहार किया।

  4. परशुराम की शिक्षा और योगदान:

    • वे एक महान गुरु भी बने और उन्होंने भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धाओं को शस्त्र-विद्या सिखाई।

    • उनका जीवन धर्म की पुनः स्थापना हेतु समर्पित रहा।

  5. राम से भेंट:

    • एक प्रसिद्ध प्रसंग में परशुराम का सामना भगवान राम से होता है, जब राम ने शिव धनुष तोड़ा था।

    • परशुराम राम के तेज से प्रभावित होकर उन्हें विष्णु का अवतार स्वीकार करते हैं।

  6. तपस्या और अंत:

    • अंततः परशुराम हिमालय में तपस्या हेतु चले जाते हैं और आज भी अमर माने जाते हैं।

    • वे कलियुग के अंत में भगवान कल्कि को शस्त्र-विद्या सिखाने फिर से प्रकट होंगे।