Description
21वीं सदी के वैश्विक विमर्शों में सैम्युअल हटिंगटन द्वारा प्रतिपादित सभ्यताओं के संघर्ष का सिद्धांत विशेष महत्व प्राप्त कर चुका है। यह अवधारणा न केवल पश्चिम और इस्लामी विश्व के वैचारिक व सामाजिक संघर्ष की व्याख्या करने का प्रयास करती है, बल्कि इससे उपजे विमर्श ने भारतीय संदर्भों में भी गहरी पैठ बनाई है। भारत जैसे बहुस्तरीय और बहुसांस्कृतिक राष्ट्र में यह संघर्ष कहीं अधिक जटिल और ऐतिहासिक रूप से गहराई में रचा बसा है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह संघर्ष केवल पश्चिम बनाम पूर्व या हिंदू बनाम मुस्लिम के खाँचों में नहीं सिमटा है, बल्कि यह आर्य और अनार्य, ब्राह्मण और बहुजन, वैदिक और पूर्व वैदिक, शासक और उपेक्षित, आधुनिकता और परंपरा—इन सभी के मध्य एक गहन ऐतिहासिक और वैचारिक अंतर्द्वंद्व की शक्ल में दिखाई देता है।
विशेष रूप से सिंधु घाटी सभ्यता और तथाकथित आर्य आगमन को लेकर जो मतभेद हैं, वे केवल प्राचीन इतिहास का बिंदु नहीं हैं; बल्कि वे आधुनिक भारतीय पहचान, सामाजिक न्याय, जातीय विमर्श और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की धुरी बन चुके हैं।
इस पुस्तक का उद्देश्य है इन ऐतिहासिक और वैचारिक जटिलताओं को सरल, सुबोध भाषा में प्रस्तुत करना, ताकि एक सामान्य पाठक भी इस विमर्श से जुड़ सके। इसमें भावनात्मक आवेगों से ऊपर उठकर तथ्यों, तुलनात्मक विश्लेषण और आलोचनात्मक सोच के माध्यम से वर्तमान बहसों को समझने की कोशिश की गई है। यह प्रयास न तो किसी पूर्वग्रह से ग्रस्त है, न ही यह किसी एक विचारधारा का समर्थन मात्र करता है; बल्कि यह बहु-दृष्टिकोणात्मक (multi-perspective) अध्ययन है, जिसमें इतिहास, पुरातत्त्व, नृविज्ञान, समाजशास्त्र और राजनीतिक-शास्त्र के संगम का प्रयास किया गया है।