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  • उपनिषद्-वाङ्मय:- Upanishad Vangamaya by Vedvati Vaidik
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उपनिषद्-वाङ्मय:- Upanishad Vangamaya by Vedvati Vaidik

विविध आयाम Various Dimensions
Publisher: Nag Publishers
Language: Hindi, Sanskrit
Total Pages: 250
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 750.00 Sale price Rs. 900.00
Unit price per
Tax included.

Description

प्राक्कथन

परिमित स्वरों में गुंफित गान की भांति ही परिमित वर्णों में गुंफित वाङ्मय अतिशय विलक्षण होता है। औपनिषदिक वाङ्मय में ऋषियों की ऋतम्भरा-प्रज्ञा और वागर्थ का मणिकाञ्चन संयोग हुआ है। मानवजाति का यह श्रेष्ठ वाड्मय मनुष्य के आध्यात्मिक पथ को जहां ज्ञान का पाथेय प्रदान करता है वहां उसके जीवनपथ को आलोकित करने वाला दीपस्तम्भ है। कारण, यह वाड्मय श्रेयस् और प्रेयस्, विद्या और अविद्या, संभूति और असंभूति, परा और अपरा विद्या का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करता है। औपनिषदिक ऋषि इस समन्वय के साक्षात् आदर्श प्रतिमान हैं।

इस वाङ्मय ने शताब्दियों से भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों को प्रभावित किया है। इस वाङ्मय में वह जीवन दर्शन है जिसने सदैव मानव को मनुष्यत्व ऋषित्व और अमरत्त्व प्रदान किया है। क्योंकि उपनिषद् वाङ्मय की धुरि 'मानव' और मानव जीवन की गुणवत्ता, उदात्तता और श्रेष्ठता ही रही है।

मानव, विधाता की सर्वश्रेष्ठ एवं सुन्दरतम रचना है। आज पश्चिम से आयातित सभ्यता की आँधी से ढहते हुए स्थाई मूल्यों, विच्छिन्न होती हुई संस्कृति एवं सुरसा की तरह सतत वर्धमान उपभोक्ता संस्कृति के कारण, मानव की अस्मिता पर घने बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे में इस दिग्भ्रमित मानवजाति को उपनिषदों का आलोक कुछ दिशा संकेत प्रदान करने में सक्षम है।

भौतिकतावाद के इस युग में मानव जीवन में गुणवत्ता का आधान कैसे संभव है ? यह एक यक्ष प्रश्न है। इसी यक्ष प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए इस पुस्तक में संकलित लेखों को लिखने का मस्तिष्क में बीज वपन हुआ। प्रारम्भ में तो मैं स्वाध्याय और स्वान्तः सुखाय उपनिषदों के पारायण में प्रवृत्त हुई थी। परन्तु कुछ वर्षों के स्वाध्याय के उपरान्त मन में विचारमन्थन होने लगा। ऐसा प्रतीत होने