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कश्मीरशब्दामृतम्:-Kashmirshabdamritam

A Kashmiri Grammar
Publisher: Nag Publishers
Language: Sanskrit, Hindi
Total Pages: 351
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 750.00 Sale price Rs. 900.00
Unit price per
Tax included.

Description

प्राक्कथन

भाषा एक ऐसा सम्प्रेषण माध्यम है जिससे मानव मात्र अपने मनोभावों को अल्पाल्प समय में और यथेष्ट रूप से अभिव्यक्त कर सकता है। यद्यपि मनोभावों को संप्रेषित करने के लिए इंगितादि अन्य साधम भी हैं परन्तु उक्त सम्प्रेषण माध्यमों से कोई सहृदय अर्थसंगति बिठलाने में सफल तथा विफल भी हो सकता है या अन्य अर्थ भी ग्रहण कर सकता है। इस प्रक्रिया से भाव-संप्रेषण में समय अधिक लगता है। अतः लोक में भाषा ही भावा-भिव्यक्ति का उत्तम एवं सशक्त माध्यम है। भाष् धातु से निष्पन्न भाषा शब्द का अर्थ है-वाणी में प्रयुक्त सार्थक शब्दसमूह जिसके द्वारा मानव अपने भावों को सम्प्रेषित करता है। प्रत्यक्ष व्यक्ति के लिए भाव-सम्प्रेषण बोलचाल से किया जा सकता है परन्तु परोक्ष व्यक्ति के लिए लिखित भाषा से यह कार्य सम्पन्न होता है। अतः भाषा के भाषित और लिखित दो रूप होते हैं।

भाषा के शुद्ध प्रयोग के लिए व्याकरण का ज्ञान अत्यन्त अनिवार्य है। वह विद्या जिसमें किसी भाषा के शुद्ध प्रयोगों के नियमों आदि का निरूपण होता है उसे "व्याकरण" कहते हैं। मनोभाव प्रकट करने के लिए वाक्यों का प्रयोग होता है और वाक्य रचना पदों से होती है। पदरचना सुबन्त या तिङङ्गन्त युक्त प्रातिपदिकों से सम्भव है। वाक्य पद तथा वर्गों से सम्बद्ध नियमों का समाचीन ज्ञान व्याकरण से होता है।

प्राचीन वैयाकरणों ने व्याकरण को ही वेदांगों में सर्वोपरि स्वीकार किया हैं- "मुखं व्याकरणं स्मृतम्" । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए शाकटा-यन, पाणिनि, कात्यायन, पतञ्जलि प्रभूति व्याकरण प्रणेताओं ने एव स्व ग्रन्थों की रचना की। महाभाष्य रचयिता पतञ्जलि ने महाभाष्य के प्रारम्भमें व्याकरणाध्ययन के पाँच प्रधान प्रयोजन बताये हैं- "रक्षोहागमलध्व-संदेहाः प्रयोजनम् ।" लोप आगम तथा वर्णं विकारों का ज्ञाता ही भलीभाँति वेदादि विद्या की रक्षा करने में समर्थ हो सकता है। महाभाष्य की दीपिका टीका में रक्षा का अर्थ सतोऽर्थस्यापायपरिहारो रक्षा नाम" प्रतिपादित