Description
भूमिका
लगभग ३५ वर्षों के सत्संग के फलस्वरूप इस ग्रन्थ को विज्ञ पाठकों के समक्ष रखते हुये मुझे असीम भगवत्कृपा का अनुभव तथा आनन्द हो रहा है. मम्बत् १९७९ वि से जब इसका छपना सुन्दरकाण्ड से आरम्भ हुआ था तब प्रेमी पाठकों में यह आशा प्रगट की गई थी कि सातों काण्ड शीघ्र ही छप जायेंगे. किन्तु इसके आकार प्रकार के कारण वह लालसा आज ८ वर्ष के पश्चात् सं १९८८ वि में भगवान ने पूरी की।
गोस्वामीजी के मंगलाचरण के मुख्यतः पहले तथा सातवें श्लोक के आधार पर इस ग्रन्थ की रचना हुई है मंगलमयवणों तथा अर्थों, रसों एवं छन्दों के 'संघ' की यथामति व्याख्या करते हुये नानापुराणों, निगमागमों रामायण तथा अन्य ग्रन्थों से तुलनात्मक वाक्य प्रत्येक चौपाई दोहा, छन्दों के नीचे उद्धृत करके उनका मुवांध भापानुवाद करने का प्रयास इसमें किया गया है। ठौर ठौर टीका टिप्पणियों द्वारा 'भंवर अवरेव' एवं महामंत्रों का चमत्कार यथासाध्य प्रदर्शित करने का प्रयत्न भी हुआ है।
'स्वान्तः सुखाय' ही इस पुण्यकार्य का प्रारम्भ किया गया था। किन्तु ज्यों ज्यों 'पुण्यारण्यविहारियों के दर्शन होते गये त्यों त्यों मालियों का कार्य बढ़ता गया।