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  • विक्रमोर्वशीयम्: Vikramaorvashiyam by Rakesh Shastri
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विक्रमोर्वशीयम्: Vikramaorvashiyam by Rakesh Shastri

ompiled By Playwright Kalidasa (With Detailed Introduction, Context, T
Publisher: Chaukhambha Orientalia
Language: Hindi
Total Pages: 496
Available in: Paperback
Regular price Rs. 600.00 Sale price Rs. 750.00
Unit price per
Tax included.

Description

प्रास्ताविकम्

'विक्रमोर्वशीयम्' नाटककार कालिदास की कुल तीन नाट्य कृतियों में द्वितीय कृति है। इसमें राजा पुरूरवा एवं उर्वशी नामक अप्सरा की प्रणय कथा को निबद्ध किया गया है। पुरूरवा एवं उर्वशी की कथा ऋग्वेद, यजुर्वेद, शतपथ ब्राह्मण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण और महाभारत आदि ग्रन्थों में मिलती है। महाकवि ने इसमें अनेक बातें जोड़ते हुए, इसे नवीन एवं रोचक रूप प्रदान किया है। कुल पाँच अंकों में निबद्ध शृंगाररस प्रधान, इस नाटक में करुण, वीर आदि दूसरे रस अंगरूप में प्रयुक्त हुए हैं। इसमें भी कवि की आरम्भिक काव्यकला को ही अभिव्यक्ति मिली है, किन्तु इसे मालविकाग्निमित्रम् की अपेक्षा अधिक उत्कृष्ट कहा जा सकता है।

अब तक के संस्कृत ग्रन्थों की व्याख्या के क्रम में जिस सरल शैली में कालिदास के 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्', 'मालविकाग्निमित्रम्', हर्ष प्रणीत 'नागानन्दम्', 'रत्नावली' नाटिका, भास विरचित 'स्वप्नवासव-दत्तम्', 'प्रतिमा नाटकम्, और विशाखदत्त के 'मुद्राराक्षसम्', भट्टनारायण विरचित 'वेणीसंहार', भवभूति के 'उत्तररामचरितम्' आदि नाट्यकृतियों की व्याख्याएँ, विस्तृत भूमिका व 'चन्द्रिका' हिन्दी, संस्कृत व्याख्या सहित प्रस्तुत की गयीं।

उसी क्रम में प्रकाशक के आग्रह एवं विद्यार्थियों के सौख्य के लिए यह व्याख्या भी प्रस्तुत की जा रही है। इस कृति के प्रकाशन के पीछे प्रथम, महत्त्वपूर्ण प्रयोजन यह है कि कुछ विश्वविद्यालयों द्वारा इसे भी पाठ्यक्रम में रखा गया है तथा इसके संस्करण सीमित ही उपलब्ध हैं, उनमें भी विद्यार्थियों की अनेक जिज्ञासाओं का समाधान पूर्ण एवं सूक्ष्मरूप से नहीं हो पाया है। द्वितीय, कालिदास त्रय के सिद्धान्त को विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत करना रहा है।