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  • मुहूर्तमार्त्तण्ड: श्रीनारायणदैवज्ञविरचित:- Muhurta Martanda
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मुहूर्तमार्त्तण्ड: श्रीनारायणदैवज्ञविरचित:- Muhurta Martanda

Publisher: Motilal Banarsidass
Language: Hindi & Sanskrit
Total Pages: 200
Available in: Paperback
Regular price Rs. 442.50
Unit price per
Tax included.

Description

फलित कथन में कई कठिनाइयों के निवारणार्थ लघु रूप में गम्भीर आशयों को स्पष्ट करने के लिए सिद्धिप्रद तथा दैवज्ञों के लिए शुभप्रद मुहूर्त्तमार्तण्ड ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। नारायणभट्ट विरचित मुहूर्त्तमार्तण्ड ग्रन्थ लेखक की बौद्धिक वैशिष्ट्यता का विशेष परिचय देता है। अपने मंगल श्लोक में ही लेखक ने स्पष्ट किया है कि लघु ग्रन्थ होते हुए भी ज्योतिष फलित मुहूर्त्त में सारगर्भित यह ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ के अध्ययन से शास्त्रज्ञों, सुधीजनों का पूर्णरूपेण मनस्तुष्टि होता है। कई साधनों की सिद्धि और शास्त्रीय अनेक शंकाओं, अर्थों को जो दुर्बोध है उन्हें दूर करता है। ऐसी ग्रन्थकार की उक्ति है । मुहूर्तमार्तण्ड ग्रन्थ में अधोलिखित विषयों का विवेचन है, जो प्रकरणों के आधार पर है।
मुहूर्त ज्योतिष शास्त्र में अनेक बृहद्-ग्रन्थों की उपलब्धि है। उनका वृहद् आकार कण्ठ करने में कठिनाई देता है। परन्तु मुहूर्त मार्तण्ड ग्रन्थ लघुरूप में (160 श्लोक) कण्ठीकरण में सुविधा जनक होने के कारण मुहूर्त्त गन्थों में शीर्षस्थ है। मुहूर्त मार्तण्ड ग्रन्थ के पूर्ववर्ती ग्रन्थों में श्रीराम दैवज्ञ ने मुहूर्त्त शास्त्रों के विस्तृत वर्णन हेतु मुहूर्त्त चिन्तामणि नामक वृहद् ग्रन्थ की रचना कर दी थी। किन्तु ग्रन्थ गौरव नहीं के कारण यह मुहूर्त मार्तण्ड ग्रन्थ पाठकों के लिए समग्र मुहूतों का सुविशद व्याख्यान सहित लाघवयुक्त होकर अत्यन्त उपयोगी है।
अत्यन्त उपयोगी मुहूर्त्तमार्तण्ड ग्रन्थ के रचयिता आचार्य नारायण हैं। ग्रन्थ रचयिता श्री नारायण ने ही स्वरचित मुहूर्त्तमार्तण्ड ग्रन्थ को टीका मार्तण्डवल्लभा भी स्वयं लिखकर शास्त्र सम्वर्द्धन से विपुल यशःकाय प्राप्त किया है। मुहूर्त ग्रन्थों में यह अतिप्रतिष्ठित प्रामाणिक ग्रन्थ है। ग्रन्थकार ने अपनी 1494 शक में मार्तण्डवल्लभा टीका लिखकर इसकी उपादेयता बढ़ा दी है।
ग्रन्थकार के ज्ञान की पराकाष्ठा भारत में लुप्तप्राय गर्भाधान संस्कार के वर्णन में प्राप्त होती है। कन्या के प्रथम रजोदर्शन के शुभाशुभ का विशद वर्णन अपनी टीका में इन्होंने किया है। यह वर्णन अन्यत्र प्राप्त नहीं होता। इसके साथ ही कन्या के प्रथम रजोदर्शन से ही उसके भावी जीवन का भी इससे ज्ञान हो जाता है। यह प्रसंग जिस प्रकार विस्तार से लिखा गया है उसे पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना अति आवश्यक है। स्त्री के प्रथम रजोदर्शन का प्रसंग लेखक की विशिष्टता प्रदर्शित करता है उसका वर्णन आवश्यक है। वह तिथि वार नक्षत्र योग दिन रात्रि के अनुसार फलादेश लिखता है।