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मैंने पढ़ा आप भी पढ़ो-Maine Padha aap bhi pado (bhaga-2) (2008)

Publisher: Guru Shri Ramchandra Prakashan Smiti
Language: Hindi
Total Pages: 240
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 450.00
Unit price per
Tax included.

Description

मैंने पढा आप भी पढिए

उस धर्म की की कोई प्रवृति अन्य धर्म के प्रति अप्रीति का कारण नहीं बननी चाहिए। अभी वर्तमान में तो देरासरों में कभी रात्रि में भावना में और दिन में पूजन में माइक द्वारा अगल-बगल के परिसर में आवाज का अत्यधिक प्रदूषण फैलता है। वृद्धजनों की नींद में विक्षेप पड़ता है, त्रास होता है, पढनेवाले विद्यार्थियों की पढाई भी बाधित होती है। अतः अजैन तो क्रोधित होते ही हैं, आधुनिक जैन भी मन ही मन कुढते हैं, अप्रीति को धारण करते हैं। कभी-2 तो ऐसे प्रसंगों पर आपस में लड़ाई-झगड़े भी हो जाते हैं। ऐसे अनुभव सभी को होते हैं। मुझे तो डर लगता है कि यह अप्रीति मजबूत बन गयी, तो दुर्लभबोधिपने में ही निमित्त न बन जाय। अतः देरासर में लाइट और माइक ही न आने दिया जाय। अगर वैसा हो, तो लोगों को, संगीतकारों को और विधिकारों को सोच-समझकर ही वहां आना पड़ेगा।

उपाश्रय के विषय में तो अहमदाबाद जैसे शहरों में अगल-बगल में रहनेवाले जैन तक इन विषयों पर अपना प्रबल विरोध प्रकट करते हैं। तब मन में ऐसा अनुभव होता है कि ये जीव कहीं दुर्लभबोधि तो नहीं बन जायेंगे ? जहां ऐसी आशंका जगती हो, वैसे संयोगों में धर्मी जीव की जवाबदारी बढ जाती है। वैसे संयोगों में हमारी वाणी में अत्यधिक संयम की जरुरत है। अगर धर्मी जीव के प्रति अप्रीति होती है, तो आगे जाकर धर्म के प्रति भी अप्रीति