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श्यामारहस्यम्- Shyama Rahasyam (2006 Edition)

Publisher: Prachya Prakashan, Varanasi
Language: Sanskrit & Hindi
Total Pages: 386
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 748.50
Unit price per
Tax included.

Description

भूमिका


तन्त्र - शास्त्र का कौलधर्म परमग्रहण दुरधिगम्य तथा दुरारोह है। जो अल्पज्ञानी हैं वो प्रवेश करने में असमर्थ होते हैं । क्रियावान व्यक्ति का सद्गुरु के निकट शिक्षा प्राप्त न होने पर तन्त्रशास्त्र का एक वर्ण भी मर्मार्थ बोध (हृदयंगम) करना बिलकुल संभव नहीं है। इसलिए इसका पात्पर्यार्थ भी वाह्निक शब्दार्थ में ग्रहण न करके आध्यात्मिक, पारमार्थिक अर्थ में ही ग्रहणीय है, युक्ति एवं विचार सम्मत भी है।
जिस प्रकार योगक्रिया में तत्वादि न्यास का नाम आलिंगन, ध्यान का नाम चुम्बन, आवाहन का नाम शीत्कार, नैवेद्य का नाम अनुलेपन, जप का नाम रमण तथा दक्षिणान्तकरण का नाम रेतः पातन है । भगलिङ्ग के कीर्तन का अर्थ शिव- काली का नामोच्चारण, विपरीता का अर्थ कुलकुण्डलिनी का सहस्रार स्थित, शिव के सहित योगकरण अर्थात् प्रवृत्ति के विपरीत भावावलम्बन है ।
तन्त्र शास्त्र में मद्य मांस, मत्स्य, मुद्र एवं मैथुन- इन पाँचों को पंचतत्व या पंचमकार कहते हैं। ये पाँच शब्द के आद्याक्षर का समाहार संयोग से पंचमकार शब्द गठित हुआ है।
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(१) मद्य - ब्रह्म में सर्वकर्मफल का समर्पण है । (२) मांस सुख - दुःख में समज्ञान रूप सात्विक ज्ञान है । (३) मत्स्य असत्संग त्याग एवं सत्सङ्ग आश्रय । है । (४) मुद्रा एवं मूलाधारस्थिता कुलकुण्डलिनी शक्ति का योग प्रक्रिया सहाय षट्चक्रभेद करके शिरस्थः सहस्रदल कमल कर्णिकान्तर्गत परमशिव के सहित संयोग संसाधन है । (५) मैथुन - ब्रह्मरन्ध्रस्थित सहस्रार का बिन्दुरूप शिव सहित कुण्डलिनी शक्ति का सम्मिलन है । इसी प्रकार पंचप्राण है जिनके द्वारा मानव शरीर के विभिन्न अंगों का संचालन होता है, तथा वो शरीर की रक्षा करते हैं ।
(१) प्राण-वायु हृदय में स्थित है, जिसका कार्य सम्पूर्ण शरीर में रक्त का संचालन करना है । अन्नप्रवेशन, मूत्रादि त्याग, अन्नविपाचन, भाषणादि, निमेषादि पंचवायु देह में अवस्थित हैं ।
(२) अपानवायु-गुह्य में स्थित है, जिसका कार्य अपान द्वारा आहार्यचालन अर्थात् (अप् + आन् ( जिन्दा रहना ) + अ (णे) जिससे बाद जीवित रहता है