Description
'वैदिक इतिहास एवं पुरातत्त्व की अद्यतन प्रवृत्तियाँ' संज्ञक यह ग्रन्थ मूलतः उन शोध निबन्धों का सङ्कलन है, जो म० सा० राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान और कावेरी शोध संस्थान के सम्मिलित प्रयत्नों से आयोजित संगोष्ठी में प्रस्तुत किये गये।
बौद्धिक दृष्टि से आज यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि प्राचीन भारत का इतिहास सम्प्रति ऐसे बहुसंख्यक व्यक्ति लिख रहे हैं, जिन्हें वैदिक और संस्कृत भाषा तथा साहित्य का आवश्यक ज्ञान भी नहीं है। इस कारण पश्चिमी विद्वानों और उनके अनुयायी कुछ भारतीय विद्वानों के द्वारा अधकचरे ज्ञान के बल पर लिखी गयी दोषपूर्ण पुस्तकों के उच्छिष्ट भोज के अतिरिक्त इनके पास दूसरा विकल्प नहीं हैं। दूसरों की जूठन से अर्जित अपनी इस अल्पज्ञता अथवा तथाकथित विद्वत्ता के सहारे, इसीलिए, ऐसे कुछ इतिहास के प्राध्यापक इतना अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं, जिसे पढ़ अथवा सुनकर प्रबुद्ध पाठक अपना सिर पीट लेता है। कभी ये कहते हैं कि 'वेदयुग में नांस-भक्षण होता था,' कभी कहते हैं कि 'उस काल के लोग निखना नहीं जानते थे।' 'आर्यों के बाहर से आने' की पश्चिमी गप्प को ये अब भी पालतू तोते की तरह दोहराते रहते हैं। वास्तविकता यह है कि वैदिक और संस्कृत वाङ्मय को मूलरूप में इनमें से अधिकांश तथोक्त विद्वानों ने पढ़ा ही नहीं है अन्यथा इस प्रकार की निरर्गल