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शृंगार भूषणम्: Shringar Bhushanam (2005)

Publisher: Sharada Sanskrit Sansthan
Language: Sanskrit, Hindi
Total Pages: 112
Available in: Paperback
Regular price Rs. 375.00
Unit price per
Tax included.

Description

संस्कृत-वाङ्मय निधि में आज भी अनेक ऐसे ग्रन्थरत्न हैं जो अप्रकाशित हैं। पूर्वकाल में मूलरूप में कुछ प्रकाशित हुये थे किन्तु आज अनुपलब्ध होने के कारण सामान्य-सहृदय-पाठकों को प्राप्त नहीं हैं। संस्कृत पाठकों की इस मांग को ध्यान में रखते हुये शारदा संस्कृत संस्थान ने ऐसे सरस रमणीय लोकोपकारक ग्रन्थों को विशेषरूप से काव्यों तथा रूपकों को संस्कृत-हिन्दी व्याख्याओं से अलंकृत कर क्रमशः प्रकाशित करने की योजना बनायी है। इस प्रकाशन-परम्परा में प्रस्तुत श्रृंगारभूषण अन्यतम है। १५वीं शताब्दी में आन्ध्र प्रदेश में उत्पन्न महाकवि भट्टवामन बाण द्वारा विरचित यह रूपक "भाण" कोटि में आता है। भाणरूपक परम्परा में इसे आलोचकों द्वारा अत्यधिक आदर प्रदान किया गया है। ललित-सरस शैली में विरचित श्रृंगाररस प्रधान यह 'भाण' समस्त काव्योचित अलंकारादितत्वों से परिपूर्ण है। निर्णय सागर प्रेस मुम्बई से इसका प्रकाशन मूल रूप में सैकड़ों वर्ष पूर्व हुआ था। मूलपाठ के अतिरिक्त टीका-टिप्पणी आदि से युक्त इसका कोई भी प्रकाशन आज तक नहीं हुआ है। आलंकारिक भाषा एवं यत्र-तत्र गूढभावों से ओत-प्रोत इस काव्य को वर्तमान में सामान्य-जनगम्य बनाने के लिये संस्कृत एवं हिन्दी व्याख्या से सुसज्जित करके प्रकाशित करना आवश्यक था। संस्थान के अनुरोध पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालयीय श्रीरणवीर संस्कृत विद्यालय, वाराणसी के साहित्याध्यापक डॉ. शिवराम शर्मा ने इस 'भाण' को संस्कृत व्याख्या, हिन्दी अनुवाद एवं भूमिकादि से सुसज्जित किया है। डॉ. शर्मा की साहित्यशास्त्र मर्मज्ञता काशी में शनैः शनैः सुरभित हो रही है। विशेषतः अध्ययन-अध्यापन में ही निमग्न रहने वाले शिष्यधन डॉ. शर्मा जी ने संस्थान के इस अनुरोध को पूर्ण कर महती अनुकम्पा की है। संस्थान उनके प्रति विनम्र कृतज्ञता ज्ञापित करता है। भगवान् विश्वनाथ की कृपा से संस्थान भविष्य में भी ऐसे ही अन्य ग्रन्थरत्नों को प्रकाशित करने में सफल होगा। ऐसी आशा है। सुधी पाठकों के परामर्श सादर आमन्त्रित हैं।