Description
'काव्यप्रकाश' संस्कृत साहित्य का एक ऐसा अतुलनीय ग्रन्थ है, जो अत्यन्त सारगर्भित तथा गूढ़ तत्त्वों से परिपूर्ण है, इसी कारण से विद्वानो के लिये इसके सूक्ष्म तत्त्वों को समझना अत्यन्त दुष्कर था। अतः भारतीय साहित्य में भगवद्गीता के पश्चात् जिस ग्रन्थ पर सबसे अधिक टीकायें लिखी गयीं वह 'काव्यप्रकाश' ही है।
काव्यप्रकाश पर रचित टीकाओं की विशाल श्रृंखला से काव्यप्रकाश का महत्त्व स्वयं द्योतित होता है तथा आज भी विद्वानों के लिये चिन्तन का विषय बना हुआ है। काव्यप्रकाश की टीकाओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान श्रीगोविन्दठक्कुर जी की 'काव्यप्रदीप' का है।
काव्यगुण तथा दोष काव्य सौन्दर्य के मानदण्ड को निर्धारित करने वाले नितान्त महत्त्वपूर्ण तथा उपादेय तत्त्व हैं। अतः प्रस्तुत ग्रन्थ में गोविन्दठक्कुर जी की 'प्रदीप' टीका को आधार बनाकर काव्य के गुण तथा दोष का समालोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में गुण-दोष प्रकरण पर जहाँ एक ओर प्राचीन आचार्यों के मतों का विश्लेषण किया गया है, वहीं नवीन आचार्यों के मतों का विवेचन करते हुये गोविन्दठक्कुर के मत का मूल्याङ्कन किया गया है।