Description
पुरुष सूक्त वेद का सार भाग है। सृष्टि वेद का ही शब्द में वर्णन शब्द वेद है। वेद मे सृष्टि का सिद्धान्त तीन प्रकार से समझाया गया है। प्रथम विधि है विश्व में बड़ी से बड़ी या छोटी सभी रचनाओं को समझे जिन्हें पुर कहा जाता
है। पुर में वास करने वाला पुरुष है। विश्व का मूल स्रोत
इस से बडा है - उसका चतुर्थ भाग ही विश्व
के निर्माण में लगा। सभी चार भाग मिलकर दीर्घ स्वर का पूरुष है। किसी पुर का अधिष्ठाता भी पूरुष है इस विधि से हम मूल विश्व का चौथाई भाग ही समझ सकते हैं। अन्य विधि है पूरे क्षेत्र को समझें जिसे श्री या स्त्री कहा गया है। इसमें तीन गुणों के कारण पदार्थ का निर्माण होता है। हम तीन गुणों का समन्वित रूप नहीं जान पाते। दोनों के कारण नए रूप बनते हैं जो यज्ञ कहलाता है। पुरुष सूक्त में इन सभी सिद्धान्तों का वर्णन है। मूल स्वरूप से आरम्भ कर यज्ञ क्रिया तक सभी वर्णित है। प्रस्तुत पुस्तक में इस सूक्त के सभी वैज्ञानिक पक्षों के साथ श्री सूक्त का भी सारांश है। इस सूक्त के माध्यम से पूर्ण वेद समझा जा सकता है।