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  • भामहकृत काव्यालङ्कार में निरूपित न्यायदोष- Faults Mentioned in Bhamaha Kavyaalankar
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भामहकृत काव्यालङ्कार में निरूपित न्यायदोष- Faults Mentioned in Bhamaha Kavyaalankar

Publisher: Sanjay Prakashan
Language: Hindi
Total Pages: 72
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 225.00
Unit price per
Tax included.

Description

पुस्तक परिचय


काव्यालङ्कार के अतिरिक्त कुछ अन्य कृतियों के साथ भी भामह का सम्बन्ध जोड़ा जाता है । परन्तु उनमें से किसी भी ग्रन्थ की प्राप्ति अभी तक नहीं हो सकी । एकमात्र उपलब्ध लक्षणग्रन्थ के आधार पर ही उन्हें अलङ्कारतंत्र प्रजापति कहा जाता है।
वैदिक साहित्य के अव्यवहित उत्तर-काल से ही दोषधारणा के विषय में संकेत मिलते रहे हैं। निश्चय ही इस सबके अवेक्षण से भामह को दोष-विवेचन की दृष्टि मिली होगी। वे दोषहान के प्रति पर्याप्त सतर्क भी हैं । इस संबंध में उनकी निश्चित मान्यताएँ भी हैं। अपनी सूक्ष्म दृष्टि का उन्होंने स्थल - स्थल पर परिचय भी दिया है। उत्तरवर्ती परम्परा में उनकी स्थापनाओं का समुचित समादर भी हुआ है। परन्तु इनके विवेचन क्रम में व्यवस्था का अभाव बार-बार खटकता है ।
काव्य में वर्णित शास्त्रीय विषय के परिज्ञान के लिए कवि और आलोचक दोनों को शास्त्र के मूल सिद्धान्तों का ज्ञान होना आवश्यक है। आचार्य भामह ने कवि को सावधान करते हुए कहा है कि अह्यद्य, अभेद्य तथा रसयुक्त होने पर भी अरमणीय काव्य कपित्थ के फल के समान अरुचिकर नहीं होता । काव्य में चारुता केवल समृद्धिपूर्ण वर्णनों से ही नहीं आती। मणियों, फलों और कुसुमों से आभूषण, उपवन और मालाओं की शोभा ही बढ़ती
काव्य का सर्वस्व तो कवि की वक्रता में निहित है। इस सन्दर्भ में यही भामह का अवदान है।