Description
पुस्तक परिचय
'लगध ज्योतिष', आचार्य लगध कृत वैदिक कैलेण्डर निर्माण हेतु किया गया श्लाघनीय प्रयास है। इसी का अन्य प्रचलित नाम वेदाङ्ग ज्योतिष है, जिसके दो संस्करण याजुष और आर्च हैं। निरन्तर गतिशील अखण्ड काल को व्यावहारिक प्रयोग में लाने हेतु, यह ग्रन्थ कैलेण्डर निर्माण की पद्धति को प्रतिपादित करता है, ताकि दर्श और पौर्णमासादि क्रियायें उचित व निर्धारित समय पर की जा सकें, फलतः शुभ अदृष्ट की प्राप्ति हो। इस पुस्तक में याजुष ज्योतिष के पद्यों को, उपलब्ध भाष्यों के आधार पर लिखी गयी हिन्दी टीका 'सुयशा' के द्वारा स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। भूमिका के रूप में उन सभी विषयों की चर्चा की गयी है जो कि याजुष ज्योतिष के कलेवर को समझने के लिये आवश्यक है। यह ग्रन्थ वेदाङ्ग काल में प्रचलित काल गणना की पद्धतियाँ, तिथ्यानयन, भागशेष, काल की इकाईयाँ, नक्षत्र, त्रैराशिक आदि विषयों की विवेचना प्रस्तुत करता है। अत्यधिक समृद्ध ज्योतिष शास्त्र की परम्परा में यह पुस्तक उस नींव के समान है, जिस पर उपरान्त ज्योतिष शास्त्र विषयक सुन्दर भवन का निर्माण हुआ। धर्मशास्त्र में कथित नानाविध धार्मिक क्रियाओं तथा प्रयोगों के उचित काल निर्धारण हेतु यह ग्रन्थ विद्वान् पाठकों के लिए अति उपयोगी है।
लेखिका परिचय
डॉ. पुनीता शर्मा सम्प्रति श्री वेङ्कटेश्वर महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय), दिल्ली के संस्कृत विभाग में रीडर पद पर कार्यरत हैं। आप एम.ए., एम. फिल.; पी-एच.डी.; पोस्ट एम.ए. डिप्लोमा इन लिग्विंसटिक्स तथा ज्योतिषाचार्य (फलित) हैं। कई प्रकार के पुरस्कार, छात्रवृत्तियाँ तथा शोधवृत्तियाँ आप प्राप्त कर चुकी हैं। जिनमें से प्रमुख स्नातकोत्तर शिक्षा हेतु ऑल इण्डिया पोस्ट ग्रेजुएट स्कॉलरशिप तथा शोध हेतु ऑल इण्डिया जूनियर रिसर्च फेलोशिप हैं। ३८वें ऑल इण्डिया ओरियन्टल कॉन्फ्रेंस, कलकत्ता १९९७ में आप अपने शोध पत्र- Metaphysics of Consciousness in the perspective of Nāsadiya Sūkta, सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र पर वी. जी. राहुरकर पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। १९९० में सभी आचार्यों में प्रथम आने पर 'भारती मिश्रा स्वर्ण पदक' तथा दिल्ली संस्कृत अकादमी द्वारा 'प्रतिभा पुरस्कार' का सम्मान आपको प्राप्त है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रिय तथा अन्तर्राष्ट्रिय शिक्षा सम्मेलनों में आप भाग लेती रहती हैं तथा कई शोध पत्र भी प्रकाशित कर चुकी हैं। दो पुस्तकें Concept of Sentence Analysis in Nyāya Philosophy, १९९८ तथा "श्लोकवार्त्तिक में प्रत्यक्ष प्रमाण" २००१ में प्रकाशित हो चुकी हैं। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद् में भी आपने संस्कृत पाठ्यपुस्तकों के निर्माण में सक्रिय योगदान दिया है। इस समय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की वित्तीय सहायता से एक डिक्शनरी (भारतीय ज्योतिष) के निर्माण में कार्यरत हैं।