Description
उपनिषद्, गीता तथा वादरायण-सूत्रों को वेदान्त वाङ्मय में प्रस्थानत्रयी के नाम से अभिहित किया जाता है। वेदान्त दर्शन के प्रमुख आचार्यों ने प्रस्थानत्रयी को मूल आधार एवं प्रमाण के रूप में सादर ग्रहण करने के साथ ही अपनी रुचि तथा बुद्धि-प्रतिभा के अनुसार उन पर भाष्यों की संरचनाएं की हैं। मूल व्याख्याकारों के अनुगामी सम्प्रदाय के आचार्य कालान्तर में पूर्वाचार्यों के भाष्यों पर टीकाओं का प्रणयन कर उनके विचारों को पल्लवित एवं पुष्पित करते हुए परम्परा एवं सम्प्रदाय को आगे बढ़ाते रहे।
शंकराचार्य ने प्रमुख उपनिषदों, गीता एवं वादरायण-सूत्रों पर अपने जीवन की प्रारम्भिक वेला एवं अत्यल्प समय में ही पाण्डित्यपूर्ण भाष्यों का प्रणयन कर अपने अद्वैतवादी मत की प्रौढ़ता का प्रतिपादन किया। उन्होंने उपनिषदों में उल्लिखित रहस्यवादी विचारों का विभिन्न लौकिक तथा वैदिक दृष्टान्तों के माध्यम से सरलता, सरसता एवं विशदत्ता के साथ व्याख्यान किया। अपनी प्रखर तर्कशक्ति के द्वारा अन्यान्य वैदिक एवं अवैदिक दर्शनों की मान्यताओं पर सशक्त प्रहार करते हुए शंकर ने बलवत्तर प्रमाणों से अद्वैतवादी सिद्धान्तों को मुखरित किया। (N)
शंकराद्वैत के प्रमुख सिद्धान्तों का पारम्परिक विश्लेषण शंकराचार्य द्वारा विकसित अद्वैत दर्शन की मुख्य मान्यताओं को एकत्र करने का एक सामान्य प्रयास मात्र है। मूलतः प्रस्थान त्रयी शंकर तथा उत्तरवर्ती आचार्यों द्वारा विरचित ग्रन्थों के आधार पर किये गये प्रस्तुत विश्लेषण में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे नया कहा जा सके। विषयगत गाम्भीर्य को देखते हुए मेरा प्रयास यदि अद्वैत दर्शन के ज्ञाता मनीषियों को अनधिकार चेष्टा लगे तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। मेरा उनसे सविनय अनुरोध है कि ग्रन्थगत अज्ञान एवं प्रमादजन्य न्यूनताओं की उपेक्षा कर अनुगृहीत करने का कष्ट करें।