Description
स्मृतिकालीन न्यायव्यवस्था पर पृथक् से अब तक कोई लिखित या गवेषणात्मक कार्य नहीं हुआ है।
दूसरे व्यवहार-पद्धति से सम्बन्धित सामग्री बिखराव से प्रभावित है। अनेक ग्रन्थों में विभाजित होने के कारण असंकलित-सी बनी हुई है। यत्र-तत्र से अध्ययन व अन्वेषण कर, मौलिक एवं प्रामाणिक ग्रन्थों तथा साहित्य के आधार पर स्मृतिकालीन व्यवहार-पद्धति को मौलिक रूप में प्रस्तुत किया गया है। शोध के आधार पर भरपूर तथ्य-पूर्ण, एवं समुपयुक्त सामग्री प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। व्यर्थ की आलोचना से परे रहकर मूल विषय सामग्री ही ग्रन्थ का कलेवर है। प्रारम्भ में विषय-प्रवेष को पृथक् से प्रस्तुत किया है। स्मृतिकालीन व्यवहार पद्धति के वास्तविक स्वरूप, उपयोगिता तथा सार्थकता को इस में दर्शाया गया है। व्यवहार-पद्धति के जटिल स्वरूप को सुलझा कर विषय की महत्ता तथा व्यवहार पद्धति के औचित्य को भी स्पष्ट किया गया है। स्मृतिकालीन व्यवहार पद्धति सामाजिक स्थिति को पापरहित तथा निर्मल बनाने में सफलता प्राप्त कर सकी, इस स्थिति को भी उजागर किया है। सम्पूर्ण विषय सामग्री सात अध्यायों में विभक्त है। इन अध्यायों में न्याय, न्यायधीश, विधि, संविधान, न्याय विधि, निर्णय पद्धति, अपील आदि का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है। सम्पूर्ण अध्यायों के पश्चात् अन्त में मौलिक ग्रन्थों की सूची प्रस्तुत की है जिनके आधार पर इस आलोच्य सामग्री को लिखा गया है।