Description
भारतीय संस्कृति के आधारभूत स्तम्भऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद हैं। इन वेदों के चार उपवेद हैं- आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद और अथर्ववेद। आयुर्वेद रूप चिकित्साशास्त्र प्राचीनकाल से ही प्रसिद्ध है। आयुर्वेद शब्द का अर्थ आयु का ज्ञान है। जिस ज्ञान से प्रत्येक प्राणी की आयु को स्थिर रखा जा सके वह आयुर्वेद है। औषधियों का रोगों पर प्रभाव, औषधियों के अनेक नाम, रोगों के नाम आयुर्वेद में बहुतायात से मिलते हैं। ऋग्वेदादि मे कहीं-कहीं इन विषयों का उल्लेख प्राप्त होता है। आयुर्वेद के अर्वाचीन आचार्यों ने भी इस विज्ञान की उत्पत्ति अथर्ववेद से ही मानी है। सोम आदि औषधियों का पान हमारे पूर्वजों को अत्यन्त प्रिय था। ब्लकि ऐसे आसब वेद काल भी बनते थे जो नशीले थे। इससे जड़ी बूटियों का परिचय मिलता है। यज्ञों में जो पशुबलि चढ़ाये जाते थे उनसे शरीर विज्ञान का ज्ञान होता है। वेदों में भ्रूण विज्ञान सम्बन्धी सिद्धान्तों का निरूपण हुआ है। ब्राह्मणादि ग्रन्थों मे अश्वादि के प्रत्येक अंग का छेदन क्रम पूर्वक वर्णित किया गया है। विनयपिटक तथा अन्य बौद्ध ग्रन्थों में भी औषधियों, शल्य चिकित्सा सम्बन्धी यंत्रों, गर्म जल के स्नान के उपयोगों के विषय में विस्तृत विवेचन प्राप्त होता है।
भारतीय आचार्यों के अनुसार आयुर्वेद आठ भित्र-भिन्न विज्ञानों का सम्मिलित नाम है (१) औषध विज्ञान (२) शल्य चिकित्सा (३) शालाक्य तंत्र (४) भूत विद्या (५) कौमार भृत्य (६) अगदतन्त्र (७) रसायन तंत्र (८) बाजीकरण तन्त्र-। आधुनिक काल में आयुर्वेद द्वारा प्रतिपादित चिकित्सा पद्धति के प्रति जनसाधारण में पुनः श्रद्धा तथा विश्वास जागृत हुआ है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में जिन रोगों का निदान सम्भव नहीं है उन रोगों का उपचार करने की सामार्थ्य आयुर्वेद में पायी जा सकती है। सर्वकार को आयुर्वेद अध्ययन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है और उसे इस पद्धति के सम्बन्ध में अनुसंधान के अवसर प्रदान करने चाहिए। आयुर्वेद ही असाध्य रोगों से पीडितों के लिए आशा की किरण बन सकता है।