अगस्त्य-संहिता एक प्रमुख धार्मिक ग्रंथ है, जो पनारात्र आगम के अंतर्गत आता है। पनारात्र आगम, विशेष रूप से शैव संप्रदाय से संबंधित है और इसमें भगवान शिव और उनके उपास्य रूपों की पूजा के लिए निर्देश दिए गए हैं।
अगस्त्य-संहिता का विशेष महत्व है क्योंकि इसे महर्षि अगस्त्य द्वारा रचित माना जाता है, जो कि एक महान ऋषि और तंत्र विद्या के जानकार थे। इस ग्रंथ में विविध प्रकार की पूजा विधियाँ, मंत्र, तंत्र और ध्यान की प्रक्रियाएँ दी गई हैं, जिन्हें विशेष रूप से शिव पूजा और तंत्र साधना में उपयोग किया जाता है।
पनारात्र आगम में विभिन्न संहिताओं और ग्रंथों का संग्रह होता है जो भगवान विष्णु, शिव और अन्य देवताओं की पूजा के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इस आगम के द्वारा धार्मिक और तांत्रिक क्रियाओं की परंपरा को संरक्षित किया गया है।
अगस्त्य-संहिता का मुख्य उद्देश्य:
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शिव पूजा विधियाँ: इसमें शिव के विभिन्न रूपों की पूजा के बारे में विस्तार से बताया गया है।
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तंत्र और मंत्र साधना: विशेष तंत्र और मंत्रों का प्रयोग भगवान शिव और अन्य देवताओं की आराधना में किया जाता है।
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ध्यान और साधना: साधक को ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मज्ञान और शिव के दर्शन प्राप्त करने की विधियाँ दी गई हैं।
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धार्मिक अनुष्ठान: यह ग्रंथ धार्मिक अनुष्ठानों, यज्ञों और यत्नों की विधि भी बताता है, जिन्हें सिद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
पनारात्र आगम और अगस्त्य-संहिता के बीच संबंध:
- पनारात्र आगम के अंतर्गत आने वाले ग्रंथों में अगस्त्य-संहिता को विशेष स्थान प्राप्त है।
- यह संहिता तंत्र विद्या, पूजा विधि और साधना के माध्यम से भगवान शिव के दर्शन और कृपा प्राप्ति का मार्ग प्रस्तुत करती है।
- पनारात्र आगम में विशेष रूप से रात्रिकाल में पूजा और साधना के लिए निर्देश दिए गए हैं, और अगस्त्य-संहिता इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।