भारतीय दर्शन, भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक विचारों, विश्वासों और जीवन के सत्य को समझने की एक गहरी प्रक्रिया है। भारतीय दर्शन में न केवल विश्व की उत्पत्ति, जीवन का उद्देश्य और मृत्यु के बाद के जीवन पर विचार किया जाता है, बल्कि यह आत्मा, ब्रह्मा, कर्म, पुनर्जन्म, और मोक्ष के बारे में भी गहन अध्ययन करता है।
भारतीय दर्शन को मुख्यतः छह प्रमुख स्कूलों (दर्शन शास्त्रों) में बांटा गया है:
न्याय दर्शन तर्क और प्रमाण पर आधारित है। इसका उद्देश्य सत्य की खोज करना और तर्क द्वारा सही निर्णय तक पहुंचना है। इस दर्शन का मुख्य सिद्धांत यह है कि सही ज्ञान प्राप्त करने के लिए सही तर्क और प्रमाण का उपयोग करना आवश्यक है।
वैशेषिक दर्शन भौतिकवाद पर आधारित है। इसमें ब्रह्मांड के तत्वों की पहचान और उनके गुणों का अध्ययन किया जाता है। यह दर्शन पदार्थ, समय, स्थान, गति और कारणों की प्रकृति को समझने का प्रयास करता है।
सांख्य दर्शन का उद्देश्य जीवन और ब्रह्मांड के निर्माण के तत्वों को समझना है। इसके अनुसार, ब्रह्मांड दो मुख्य तत्वों से बना है: पुरुष (आध्यात्मिक तत्व) और प्रकृति (भौतिक तत्व)। यह दर्शन व्यक्ति के आत्मा के ब्रह्म से मिलन की प्रक्रिया को समझाता है।
योग दर्शन का उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना और मानसिक और शारीरिक शांति प्राप्त करना है। इसका सबसे प्रमुख ग्रंथ "पठञ्जलि योग सूत्र" है। योग आत्म-निर्माण और आत्मसाक्षात्कार के लिए एक साधना है, जिसमें प्राणायाम, ध्यान, और समाधि का अभ्यास किया जाता है।
मिमांसा दर्शन वेदों की व्याख्या और धार्मिक कर्मकांडों के महत्व पर ध्यान केंद्रित करता है। यह दर्शन वेदों को प्रमाण मानता है और यह मानता है कि वेदों का अनुसरण करने से धर्म का पालन होता है और जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति होती है।
वेदांत दर्शन वेदों के उपनिषदों के विचारों पर आधारित है। यह आत्मा और ब्रह्मा के अद्वितीयता पर बल देता है, अर्थात् आत्मा (आत्मा) और ब्रह्म (ईश्वर) एक हैं। वेदांत के प्रमुख आचार्य शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का प्रतिपादन किया, जो यह मानता है कि संसार की विविधता भ्रम है और सत्य केवल ब्रह्म है।
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