बौद्ध धर्म का सार उसकी चार प्रमुख सिद्धांतों में समाहित है, जिन्हें "चार आर्य सत्य" (Four Noble Truths) कहा जाता है:
दुःख (Dukkha): जीवन में दुःख है। बौद्ध धर्म यह स्वीकार करता है कि जीवन में दुःख, पीड़ा, और असंतोष का अनुभव होता है। यह दुःख जन्म, बुढ़ापे, बीमारी, और मृत्यु के रूप में प्रकट होता है, और यह आत्मा के निरंतर परिवर्तन और अस्थिरता से जुड़ा हुआ है।
दुःख का कारण (Samudaya): दुःख का कारण इच्छा (तृष्णा) और बंधन है। बौद्ध धर्म के अनुसार, हमारे दुःख का मुख्य कारण है - इच्छाएँ और आकांक्षाएँ। जब हम संसारिक सुखों की चाह करते हैं, तो यह अंततः दुःख का कारण बनती हैं, क्योंकि ये इच्छाएँ कभी पूरी नहीं हो सकतीं और असंतोष का कारण बनती हैं।
दुःख का निवारण (Nirodha): दुःख का अंत किया जा सकता है। बौद्ध धर्म यह मानता है कि अगर इच्छाओं और बंधनों को समाप्त किया जाए तो दुःख का अंत हो सकता है, और इस अवस्था को "निर्वाण" कहा जाता है। निर्वाण एक ऐसी अवस्था है जहाँ व्यक्ति सभी इच्छाओं और मानसिक पीड़ा से मुक्त हो जाता है।
आठfold मार्ग (Magga): दुःख से मुक्ति प्राप्त करने का तरीका है "आठfold मार्ग", जिसे "निर्वाण" की दिशा में मार्गदर्शन देने के रूप में देखा जाता है। यह आठ तत्व हैं:
Your cart is currently empty.