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बोधिचर्यावतार- Bodhicharyavatara

Publisher: Samayak Prakashan
Language: Hindi
Total Pages: 280
Available in: Hardbound
Regular price Rs. 300.00
Unit price per
Tax included.

Description

"Bodhicharyavatara" (बोधिचर्यावतार) एक प्रसिद्ध बौद्ध ग्रंथ है, जिसे संत शांतरक्षित और आचार्य शान्तिदेव द्वारा लिखा गया है। इसका अर्थ है "बोधिचित्त की क्रिया का प्रवेश" या "बोधिसत्व के आचरण का आगमन"। इसे संस्कृत में लिखा गया था और यह बौद्ध धर्म के महायान शाखा का महत्वपूर्ण ग्रंथ है।

यह ग्रंथ बोधिसत्व के आचारण को समझाने वाला एक गाइड है, जिसमें बौद्ध धर्म के सिद्धांतों, ध्यान की प्रक्रिया, करुणा, और धर्म के अनुसार सही जीवन जीने के तरीके पर गहरा दृष्टिकोण दिया गया है।

इसका मुख्य उद्देश्य बोधिसत्व के मार्ग को स्थापित करना है, जो न केवल अपने उद्धार के लिए, बल्कि सभी प्राणियों के कल्याण के लिए प्रयास करता है। इस ग्रंथ में शांतरक्षित ने बोधिसत्व के कार्यों, उनके ध्यान, नैतिक जीवन, और मानसिक परिष्कार के बारे में विस्तार से बताया है।

Bodhicharyavatara के कुछ प्रमुख अध्यायों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. बोधिचित्त का विकास – यह अध्याय बोधिसत्व के मार्ग की शुरुआत और उनके दृष्टिकोण के महत्व को बताता है।
  2. ध्यान और समाधि का अभ्यास – इस अध्याय में ध्यान और मानसिक संतुलन के अभ्यास पर जोर दिया गया है।
  3. करुणा और दया – बोधिसत्व का सबसे महत्वपूर्ण गुण करुणा है, जिसे इस भाग में विस्तार से समझाया गया है।
  4. धर्म और सत्य का पालन – बोधिसत्व को हमेशा धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने का निर्देश मिलता है।