आधुनिक भारत का आर्थिक इतिहास भारतीय उपमहाद्वीप में 18वीं सदी के मध्य से शुरू होकर आज तक के विकास को दर्शाता है। यह समय ब्रिटिश साम्राज्य के प्रभाव, औद्योगिकीकरण, स्वतंत्रता संग्राम, और बाद में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के आर्थिक बदलावों का मिश्रण रहा है।
1. ब्रिटिश शासन (1757-1947)
-
आर्थिक शोषण: 18वीं सदी के मध्य में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में कदम रखा। ब्रिटिशों ने भारतीय संसाधनों का शोषण किया, जिनमें कृषि, कच्चा माल, और श्रम प्रमुख थे। भारत से कच्चा माल ब्रिटेन भेजा जाता था और वहीं पर उसका प्रसंस्करण करके तैयार माल वापस भारत भेजा जाता था। इससे भारतीय हस्तशिल्प उद्योगों को नुकसान हुआ।
-
राजस्व व्यवस्था: ब्रिटिशों ने राजस्व संग्रहण के लिए जमींदारी व्यवस्था और अन्य कड़ी कर व्यवस्थाएं लागू कीं, जिसके परिणामस्वरूप किसानों पर अत्यधिक करों का बोझ पड़ा और कृषि संकट में डाल दी गई।
-
औद्योगिकीकरण का अभाव: ब्रिटिशों ने भारत में औद्योगिकीकरण के बजाय कच्चे माल की आपूर्ति के रूप में देखा। भारत में जो औद्योगिकीकरण हुआ, वह ब्रिटेन के हितों के अनुसार था, जैसे कि कपड़ा उद्योग की शुरुआत हुई, लेकिन यह भी ब्रिटेन की जरूरतों को पूरा करने के लिए था।
2. स्वतंत्रता संग्राम (1857-1947)
- स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय नेताओं ने यह महसूस किया कि ब्रिटिश शासन ने भारत के आर्थिक ढांचे को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। गांधी जी ने स्वदेशी आंदोलन और स्वावलंबन की विचारधारा को बढ़ावा दिया।
- भारतीय नेताओं ने औद्योगिकीकरण, शिक्षा, और उन्नति के लिए ब्रिटिश शासन से अलग नीतियों की आवश्यकता की बात की।
3. स्वतंत्रता के बाद (1947 के बाद)
-
नेहरू-युग (1947-1964): जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने औद्योगिकीकरण और आधिकारिक विकास योजनाओं की दिशा में कदम बढ़ाया। इस समय में भारतीय सरकार ने औद्योगिक नीति, पंचवर्षीय योजनाएं, और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की स्थापना की।
-
औद्योगिकीकरण: भारी उद्योगों, बिजली, इस्पात, और खनिजों के क्षेत्र में सरकारी निवेश बढ़ाया गया।
-
कृषि सुधार: भूमि सुधार और हरित क्रांति की शुरुआत की गई ताकि कृषि उत्पादन में वृद्धि हो।
-
भारत की अर्थव्यवस्था में चुनौतियाँ: स्वतंत्रता के बाद भारत के सामने गरीबी, बेरोजगारी, और कच्चे माल की कमी जैसी समस्याएँ थीं। इसके बावजूद, नेहरू सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से विकास करने का प्रयास किया।
4. 1970 और 1980 का दशक
-
आपातकाल और आर्थिक नियंत्रण: 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का असर आर्थिक विकास पर पड़ा। सरकार ने कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को स्थापित किया और राष्ट्रीयकरण की नीति अपनाई।
-
सामाजिक योजनाएँ: इंदिरा गांधी के नेतृत्व में गरीबी हटाने के कई प्रयास किए गए, लेकिन उनका असर कम था। इस दौरान विकास दर भी धीमी रही।
5. 1991 का आर्थिक सुधार
-
उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण (LPG): 1991 में भारत में आर्थिक संकट के बाद नरसिम्हा राव सरकार और वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। इन सुधारों में:
-
उदारीकरण: विदेशी निवेश के लिए द्वार खोले गए।
-
निजीकरण: सरकारी कंपनियों का निजीकरण किया गया।
-
वैश्वीकरण: भारत को वैश्विक बाजार से जोड़ने की दिशा में कदम बढ़ाए गए।
-
नौकरशाही की भूमिका में बदलाव: भारत ने बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाया। इसके परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से वृद्धि हुई और भारत वैश्विक स्तर पर प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा।
6. आधुनिक भारत (2000-2025)
-
आर्थिक वृद्धि: 2000 के दशक के बाद भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी, विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और सेवा क्षेत्र में। भारतीय कंपनियाँ वैश्विक स्तर पर फैलने लगीं, और देश का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) लगातार बढ़ता गया।
-
बुनियादी ढांचे में सुधार: सड़क, रेलवे, और हवाई यातायात के क्षेत्र में सुधार के प्रयास किए गए, जिससे देश में व्यापार और यातायात को प्रोत्साहन मिला।
-
मुद्रास्फीति और मुद्रा सुधार: 2016 में नोटबंदी और बाद में वस्तु एवं सेवा कर (GST) का लागू होना, दोनों ही बड़े आर्थिक सुधार थे, जिनका उद्देश्य काले धन और भ्रष्टाचार पर काबू पाना था।