🔄

  • Book cover with a man sitting and mathematical symbols and text on an ornate background
  • भारतीय प्राचीन गणित तथा उसके विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी में अनुप्रयोग- Bhartiya Pracheen Ganit tatha uske Vigyan Evam Prodhyogiki mei Anuprayog
  • भारतीय प्राचीन गणित तथा उसके विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी में अनुप्रयोग- Bhartiya Pracheen Ganit tatha uske Vigyan Evam Prodhyogiki mei Anuprayog
  • भारतीय प्राचीन गणित तथा उसके विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी में अनुप्रयोग- Bhartiya Pracheen Ganit tatha uske Vigyan Evam Prodhyogiki mei Anuprayog
  • भारतीय प्राचीन गणित तथा उसके विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी में अनुप्रयोग- Bhartiya Pracheen Ganit tatha uske Vigyan Evam Prodhyogiki mei Anuprayog
  • भारतीय प्राचीन गणित तथा उसके विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी में अनुप्रयोग- Bhartiya Pracheen Ganit tatha uske Vigyan Evam Prodhyogiki mei Anuprayog
  • भारतीय प्राचीन गणित तथा उसके विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी में अनुप्रयोग- Bhartiya Pracheen Ganit tatha uske Vigyan Evam Prodhyogiki mei Anuprayog
  • भारतीय प्राचीन गणित तथा उसके विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी में अनुप्रयोग- Bhartiya Pracheen Ganit tatha uske Vigyan Evam Prodhyogiki mei Anuprayog
  • भारतीय प्राचीन गणित तथा उसके विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी में अनुप्रयोग- Bhartiya Pracheen Ganit tatha uske Vigyan Evam Prodhyogiki mei Anuprayog

भारतीय प्राचीन गणित तथा उसके विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी में अनुप्रयोग- Bhartiya Pracheen Ganit tatha uske Vigyan Evam Prodhyogiki mei Anuprayog

Publisher: Motilal Banarsidass
Language: Hindi
Total Pages: 290
Available in: Paperback
Regular price Rs. 975.00 Sale price Rs. 1,125.00
Unit price per
Tax included.

Description

प्राचीन काल में आर्यावर्त की पुण्यधरा पर आध्यात्मिक सिद्धान्तों के साथ-साथ वैज्ञानिक तथ्यों को स्थापित करने की परम्परा रही है। इस परम्परा के संवर्द्धन एवं परिपोषण में अनगिनत ऋषियों, विचारकों, संतों, महात्माओं, मनीषियों एवं वैज्ञानिकों का सराहनीय तथा उत्साहवर्धक योगदान रहा है। सभ्यता और संस्कृति का विकास साथ-साथ होता है। सभ्यता भौतिक संसार को सम्पन्नता प्रदान करती है तो संस्कृति मानवीय चेतना को प्रबुद्ध करती है। सभ्यता का चक्र विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सहारे आगे बढ़ता है जबकि संस्कृति का चक्र साहित्य और अभिव्यक्ति के सहारे। परन्तु दोनों का चक्र गणितीय अनुशासन से ही गतिशील होते है। अतः गणित-बोध के बिना सभ्यता और संस्कृति का विकास सम्भव नहीं है।

यह पुस्तक भारतीय गणितीय ज्ञान परंपरा का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करती है। इसमें आर्यभट्ट सहित प्राचीन गणितज्ञों के योगदान अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति, शुल्व सूत्र, भक्षाली गणित और त्रिकोणमिति जैसे विषयों पर गहन विश्लेषण है। पुस्तक शून्य की खोज, संख्या पद्धतियों, गणित के आध्यात्मिक एवं दार्शनिक पहलूओं के साथ-साथ आइंस्टीन के सापेक्षवाद और भारतीय सगुण-निर्गुण ब्रह्म की अवधारणा पर एक चिन्तन भी प्रस्तुत करती है। यह प्राचीन गणित के सिद्धांतों को आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक से जोड़कर उनकी प्रासंगिकता को रेखांकित करती हैं। यह शोधकर्ता, विद्यार्थी और गणित के इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए अत्यंत उपयोगी संसाधन है।