Description
समालोचना, आलोचना, विवेचना, विश्लेषण या समीक्षा का इतिहास बहुत पुराना है। जब से मानव-जाति अपनी बुद्धि-वैभव एवं विवेक के बल पर फूल एवं काँटों का भेद समझने लगी तथा उनके गुण-दोषों की विवेचना एवं तुलना करने लगी, तभी से इनका जन्म मानना चाहिए। मानव का नीर-क्षीर परखने का यही विवेक उसे प्रेरित किया होगा साहित्यिक कृतियों की समालोचना, आलोचना, विवेचना या विश्लेषण की ओर अग्रसर होने के लिए।
इस आलोचनात्मक पुस्तक के लिए चार उपन्यासों का चयन किया है जिनका प्रकाशन स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद हुआ है। इन सभी में गुलामी एवं उससे उपजी परिस्थितियों का ही दर्द है। पहला उपन्यास नागार्जुन का "बलचनमा" है। जिसमें नागार्जुन ने परतंत्र भारत के मिथिलांचल के रारीबों की त्रासदी की कहानी कही है। दूसरा उपन्यास भीष्म साहनी का 'तमस' है। जिसमें विभाजन एवं देश की आज़ादी के ठीक पहले की कहानी है। भीष्म साहनी ने 'तमस' के माध्यम से उन संकीर्ण मानसिकता के लोगों पर प्रहार किया है, जिन लोगों ने सूअर और गाय को बचा लेने का पुण्य प्राप्त करने की उम्मीद में हज़ारों मासूमों के खून की होली खेली थी।
तीसरा उपन्यास कृष्णा सोबती का "ज़िन्दगीनामा" है, जिसमें लेखिका ने अपनी जड़ से कटने की पीड़ा को तो इस उपन्यास में प्रकट किया ही है, साथ ही अंगरेजों के अत्याचार और स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग की कहानी भी कही है। चौथा उपन्यास है मृदुला गर्ग का "अनित्य" जो गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन और भगत सिंह के क्रांतिकारी आन्दोलन को केन्द्र में रखकर लिखा गया है। समालोचना के दौरान भरसक यह प्रयत्न किया गया है कि इन चारों ग्रंथों को खुलकर बोलने का मौक़ा मिले।
"ज्योत्स्रा जी की आलोचना हर आलोच्य उपन्यास की विशेषताओं को अपने विश्लेषण में अलग करती हैं और किस तरह वे सभी उपन्यास एक वृहत्तर प्रसंग में सम्बन्धित हैं इसका संकेत करती हैं .... स्वाधीनता का संघर्ष जहाँ भी है. जैसा भी है- इन सभी में फैले आकाश में प्रवेश करने की योग्यता उनकी आलोचना में निहित है।"