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अंक ज्योतिष के विभिन्न आयाम विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों में प्राचीन काल से ही किसी न किसी रूप में विद्यमान रहे हैं । हमेशा से अंक ज्योतिष से जुड़े लब्धप्रतिष्ठ पुरोधाओं का मानना रहा है कि अंकों का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव होताहै तथा किसी खास समूह के अंक जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे जीवन को सकारात्मक अथवा नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं । हालाँकि विश्व के विभिन्न हिस्सों में भिन्न-भिन्न प्रकार की पद्धतियाँ प्रचलित हैं तथा उनके विश्लेषण कातरीका भी अलग-अलग है किंतु पाइथागोरस द्वारा प्रतिपादित पद्धति सर्वश्रेष्ठ है । अंक ज्योतिष के विभिन्न आयामों में पाइथागोरस, सेफेरियल, कीरो भारतीय वैदिक अंक ज्योतिष आदि प्रचलित हैं, परंतु हमने सभी पद्धतियों का गहनअध्ययन किया और पाया कि पाइथागोरस द्वारा विवेचित पद्धति सर्वोपयोगी एवं सर्वोत्कृष्ट है । 'अंक ज्योतिष के रहस्य' में हमने पाइथागोरस की ही पद्धति का अनुसरण किया है । हमने पाया है कि इस पद्धति के द्वारा भूत, वर्तमान एवंभविष्य का स्पष्ट आकलन किया जा सकता है । हमारे विगत वर्षों से दिए जा रहे आकलन एवं हमारी भविष्यवाणियाँ शत प्रतिशत सही रही हैं ।
लेखक परिचय
डॉ० रवीन्द्र कुमार
डॉ० रवीन्द्र कुमार ने IIT, दिल्ली से गणित विषय में अपना शोध पूरा करने के पश्चात् पीएच०डी० की उपाधि 1968 में प्राप्त की । तत्पश्चात् और आगे की शोध के लिए इंग्लैण्ड गए तथा वहाँ लंकास्टर एवं लंदन विश्वविद्यालय में अपनी लगनतथा अथक परिश्रम से सफलतापूर्वक पीएच० डी० के उपरान्त का शोध पूरा किया ।
तत्पश्चात् इन्होंने IIT, दिल्ली में गणित के प्राध्यापक के रूप में 2० वर्षो तक अध्यापन कार्य किया । यहाँ से इन्होंने तत्पश्चात् त्यागपत्र दे दिया तथा इसके उपरान्त विश्व के 1० श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में अलग-अलग देशों में गणित के प्राध्यापकके रूप में अध्यापन कार्य किया । प्राध्यापक के रूप में हर जगह इन्होंने श्रेष्ठता हासिल की तथा अनेक उपलब्धियों से नवाजे गए । इस दौरान इन्होंने अभियांत्रिकी गणित पर 10 पुस्तकें भी लिखी जो आज अभियांत्रिकी संस्थानों में पाठ्यपुस्तकों की सूची में शामिल हैं ।
शोध कार्य के दौरान ही 1973 में जब ये लंदन में थे तो इनकी अभिरूचि अंक ज्योतिष में जागृत हुई । इन्होंने अंक ज्योतिष का गहन अध्ययन किया तथा इसमें महारत हासिल की । विभिन्न देशों में अपने अध्यापन कार्य के दौरान इन्होंनेहजारों अंक कुण्डलियों का विशद् विश्लेषण कर सफल भविष्यवाणियाँ कीं । आज इनकी गिनती विश्व के दो-तीन सर्वश्रेष्ठ अंक ज्योतिषियों में होती है ।
इतना ही नहीं, प्रारंभ से ही इनकी गहरी अभिरूचि अध्यात्म में रही । अपने अध्यापन कार्य के दौरान ही कुछ महान गुरूओं से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की तथा कठिन साधना में लग गए । अध्यापन के अपने दायित्वों को पूर्ण निष्ठा से निभाने केसाथ-साथ ये घंटों साधना में लगे रहते थे । इनकी कठिन साधना का फल इन्हें 1987 में प्राप्त हुआ जब ये जिम्बाब्बे में अध्यापन कार्य कर रहे थे । इसी समय इन्हें आत्म-अनुभूति हुई तथा इन्हें कुण्डलिनी जागृत होने का अनुभव प्राप्त हुआ ।इसके उपरान्त पूरी तरह से इनकी अभिरूचि अध्यात्म की ओर झुक गई । इन्होंने 1994 में अन्तिम रूप से गणित के प्राध्यापक पद से इस्तीफा दे दिया तथा अपना पूरा समय अध्यात्म को समर्पित कर दिया ।
1996 में बेल्क शोध संस्थान, अमेरिका ने इन्हें तुलनात्मक धर्म का प्राध्यापक नियुक्त किया । कुछ वर्ष यहाँ कार्य करने के पश्चात् इन्होंने ' योग दर्शन एवं साधना ' के प्रोफेसर के रूप में